एक ही कोख - दो फर्क क्यों?
साहित्यएक ही कोख - दो फर्क क्यों? /// जगत दर्शन न्यूज ✍️प्रीति जायसवाल, रायबरेली एक पुरुष का स्पर्म मैं भी हूँ, एक पुरुष का स…
एक ही कोख - दो फर्क क्यों? /// जगत दर्शन न्यूज ✍️प्रीति जायसवाल, रायबरेली एक पुरुष का स्पर्म मैं भी हूँ, एक पुरुष का स…
बरसात की बात ✍️ डॉ प्रेरणा बुडाकोटी, नई दिल्ली सावन मास के आने का प्रतीक है, बरसात, गर्मी में ठंडक का एहसास है, बरसात…
स्वतंत्रता दिवस पर ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन, देशभक्ति से गूंजा साहित्यिक मंच /// जगत दर्शन न्यूज ✍️प्रेरणा बुडाकोट…
रूत सावन की ✍️किरण बरेली सावन की रिमझिम फुहारों में सपनों के संग बिखरने दो मुझे।। इस सावन रुत की फिज़ाओं में खुशगव…
🇮🇳 भारतवासी सावधान....... 🇮🇳 ✍️बिजेन्द्र कुमार तिवारी ///जगत दर्शन साहित्य भारतवासी सावधान, नेक सोच से कर पहचान …
🌧️ मन भावन सा व न 🌧️ ✍️ बिजेंद्र कुमार तिवारी (बिजेंद्र बाबू) सरस सुहावन पावन सखी, मनभावन सावन मास। रिमझिम बदरा…
साहितयाकाश में प्रेमचंद जी प्रेमचंद जयंती पर विशेष रचना ✍️ किरण बरेली रोटियों के सेंकते वक्त ज़ेहन में एक ख्याल आ ज…
पायल (कहानी) ✍️ सीमा कुमारी (सहायक शिक्षिका, केपीएस गोबरही, सारण) अं शु की जब शादी हुई थी तब उसके ससुराल में स…
🌧️ सा व न 🌧️ सावन बहार है, अपना खोया बचपन है, सोचो तो स्वर्ग है! प्रख्यात कवयित्री किरण बरेली की एक सारगर्भित रचना…
गुम हुए परिचय तमाम एक सारगर्भित रचना, शब्द तो प्रत्यक्ष है मगर गुप्त रूह को तलाशती किसी की निगाहें, अनगिनत प्रश्न और…
सबसे पहले राष्ट्र धर्म ✍️बिजेन्द्र कुमार तिवारी (बिजेंदर बाबू) भड़की है नफरत की ज्वाला, पहले उसे संभालो मरी आत्मा आज …
बेश्कीमती पल! किरण बरेली जी को वैवाहिक वर्षगांठ पर आपको और आपके जीवनसाथी को वैवाहिक जीवन की एक और सुंदर वर्षगांठ की …
अनुराग ✍️डॉ. कंचन मखीजा, रोहतक, हरियाणा, 9991186186 /// जगत दर्शन साहित्य हुए मुदित मन कलियों के.. खिले हैं पुष्पों क…
बाल मीमांसा निर्मल-पावन, कोमल-निश्छल बाल हृदय की लघु मीमांसा। न शब्दों की, न ध्वनियों की, जाने कोई भाषा.. आतुर हर क्ष…
अजब ये तेरा माया है..... ✍️बिजेन्द्र कुमार तिवारी (बिजेन्दर बाबू) कोटिन जीव जियत जग माहीं, सब पर तेरी छाया है.... सब …
माँ शारदे वंदना: आत्म-अभिव्यक्ति ✍️डॉ. कंचन मखीजा, रोहतक, हरियाणा, 9991186186 माँ शारदे वंदना नमन करूं हे शारदे माता, …
गीत- सुनो कान्हा! ✍️डॉ कंचन मखीजा मेरे अंतर के तुम हो प्राण, हो मेरे जीवन की पहचान। मैं तुझ संग नेह लगाऊं.. प्रीत …
निराकार साकार..... (ब्रह्म स्तुति) ✍️बिजेन्द्र कुमार तिवारी जग कर्ता-हर्ता हरि, जग पालक जग रुप। सृष्टि के कण-कण बसी, …
शुक्रिया में.. ✍️डॉ. कंचन मखीजा तेरी दोस्ती के हर दुआ कम है। सजदे में उठ रहे हाथ.. खुशी से आंख नम है।। सवारूं निखारुं य…
तेरी नज़र से ही खुद को पहचाना मैने! डाॅ.कंचन मखीजा ए ज़माने! तेरी नज़र से ही खुद को पहचाना मैने। हूँ मैं किस मिट्टी …