गुम हुए परिचय तमाम
एक सारगर्भित रचना, शब्द तो प्रत्यक्ष है मगर गुप्त रूह को तलाशती किसी की निगाहें, अनगिनत प्रश्न और रहस्यमई प्रेम को उजागर करती काव्य है!
मैं खुद में गुमशुदा हूं
कुछ शख्स पूछ लिया करते हैं
मेरा नाम पता मेरा
मैं तो मुसाफिर की तरह हूं
पांव सफ़र ही सफर में
फिर भी लोग पूछते है
गली/घर का ठिकाना
नितान्त अकेलेपन के
अनगिनत वर्ष
अंजान सी डगर/पश्चाताप के जंगलों में मिली सजाओं को बिताते
साल दर साल गुजर रहे हैं
मैं तो लम्हा हूं गुज़रा हुआ
फिर भी मेरी पहचान पूछ रहे हैं
कैसे बताऊं उन्हें
गुम है सभी परिचय तमाम।
अनामिका।
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