जगत जननी माँ जगदम्बा के 9 रूपों को नमन
इस बार नवरात्रि की शुरुआत सोमवार को हो रही है। ऐसे में माता गज (हाथी) पर चढ़कर भक्तों के द्वारा आती है।
एक भक्त का उद्गार:-
देखो गज पर चढ़ी भवानी, झूम-झूम कर आती।
मन इच्छित वर देकर अपने, भक्तों को हर्षाति।।१।।
रिमझिम पड़े फुहार भक्त सब, मंद मंद मुस्काये।
श्रद्धा-भक्ति से मांँ का, दुर्लभ दर्शन पाये।।२।।
जगत जननी माँ जगदम्बा के नवो रूपों को नमन:-
माँ का प्रथम रूप (शैलपुत्री):-
पहला दिन नवरात्र का, नमन करूँ सिर नाय।
शैलपुत्री माँ आई के, कारज देहु बनाय।।१।।
पूजा जब समझूँ नहीं, नाहीं समझूँ ध्यान।
अपने शरण लगाय के, दो मांँ इक वरदान।।२।।
काम क्रोध के फाँस में, जकड़ा है मन मोर।
लोभी अधम अधीर हैं, घेरे चारों ओर।।३।।
मैं मूरख नादान हूंँ, ना बुद्धि ना ज्ञान।
अपना प्रेम जगाय के, कर दो कृपा महान।।४।।
दानव दल को रोकिये, कर मानव उत्थान।
साहस धैर्य बढ़ाइये, दे अमृतमय ज्ञान।।५।।
माँ का दूसरा रूप (ब्रह्मचारिणी):-
शक्ति शान्ति वर दीजिए, दीजै भक्ति अपार।
ब्रह्मचारिणी आप से, बहु विधि विनय हमार।।१।।
बायें हाथ कमण्डलु, दायें माला धारे।
तप संयम बल मातु तू, सबके काज संँवारे।।२।।
खड़ा हुआ कर जोर माँ, भोग भाव से लाया हूँ।
पूरी कर दो आसरा, दर पर शीश झुकाया हूँ।।३।।
सुख की आशा है नहीं, ना है धन की चाह।
हे माता वर दीजिए, चलूँ सदा सत् राह ।।४।।
माँ का तिसरा रूप (चंद्रघंटा)
चंद्रघंटा को नमन करूँ, हाथ जोड़ सिर नाय।
अवगुण सभी बिसार के, लेहू शरण लगाय।।१।।
पराक्रमी निर्भय बानूँ, रहूँ पाप से दूर।
दीन दुखी मजबूर की, सेवा हो भरपूर।।२।।
चंदन जैसी शीतलता, तेज चंद्र समान।
सूरज जैसा यस बढ़े, दो माँ यह वरदान।।३।।
ब्रह्मा विष्णु शिव दिये, अभय दिव्य वरदान।
सृष्टि के काण-कण बसी, गौरवमयी पहचान।।४।।
स्वर्ण रंग दस हाथ में, अस्त्र-शस्त्र गंभीर।
दिव्य जोत जगमग करे, तेरा सकल शरीर।।५।।
नमन करूंँ माँगू सदा, अभय दिव्य वरदान।
दसों दिशा में यश बढ़े, गौरवमई पहचान।।६।।
माँ का चौथा रुप (कुष्मांडा):-
रोग शोक हो दूर बढ़े, आयु यश आरोग्य।
बल बुद्धि विद्या मिले, बनूँ भक्ति के योग्य।।१।।
मां कुष्मांडा अष्टभुजा, आदिशक्ति का रूप।
शेर सवारी मातु की, लगती दिव्य अनूप।।२।।
जीवन में खुशियाँ बढ़े, मिटे सकल मम क्लेश।
नित् सज्जन का साथ हो, रहे शान्तिमय वेश।।३।।
विपदा आन पड़ी बड़ी, आकर हमें बचाओ।
अवगुण सभी विसार के, अपने गले लगाओ।।४।।
माँ का पाँचवा रूप (स्कंद माता):-
जगदंबा का पंचम रूप, स्कंदमाता कहलाई।
स्कंददेव की माता होने, का वो गौरव पाई।।१।।
चार भुजा है सिंह सवारी, गोद में कार्तिक राजे।
दिव्य रूप है मातु तुम्हारी, कमल सिंहासन साजै।।२।।
पीला वस्त्र पहनकर माता, पीले फूल चढ़ाऊँ।
पीले ही नैवेद्य की माता, छिन-छिन भोग लगाऊँ।।३।।
पूजा जप-तप ध्यान तुम्हारा, आज करूंँ हे माता।
तू जग जननी आदि भवानी, सबकी भाग्य विधाता।।४।।
जन्म सफल हो जाये मांँ, मिले जो सत् आशीष।
तेरे दर पर मैं कहूँ, सदा नवाकर शीश।।५।।
मांँ का छठा रूप (कात्यायनी):-
कात्यायन घर जन्म लिये, कात्यायनी कहलाई।
सब सुख वैभव देने की मांँ, तूने गौरव पाई।।१।।
चतुर्भुजी माँ आम्बिका, सोहे षष्टम रूप।
हे माता कात्यायनी, सकल सृष्टि की भूप।।२।।
मांँ जगदंबा रूप तू, देवी शक्ति स्वरूप।
कमल खड्ग सोहे सदा, दिखती छवि अनूप।।३।।
आशीष लेकर पिता की, तूने रन को धारा।
दानव दमन किये हे माता, महिषासुर को मारा।।४।।
जय जय करे हे माता, सभी देव अरु दानव।
नाम सुनत हीं भाग पराये, प्रेत अधम अरु दानव।।५।।
तू मेरी महारानी मइया, मैं हूंँ तेरा चेरा।
जग की माया छोड़ के डालूँ, तेरे दर पर डेरा।।६।।
मांँ का सातवाँ रूप (कालरात्रि):-
अंधकार का नाश करे माँ, उर सत् भाव जगाती।
काले घने रंग के कारण, कालरात्रि कहलाती।।१।।
अतिशय क्रोध के कारण मइया, हुई गौर से श्याम।
पापिन को मारे बिना, किये नहीं विश्राम।।२।।
रक्त बीज को मारे मइया, खप्पर खून चढ़ये।
चुन-चुन कर मारी तू सबको, निश्चर बच नहीं पाये।।३।।
त्राहि त्राहि कर रहे देव तब, तूने मान बचाया।
दुष्टों का संहार किया, भक्तों को गले लगाया।।४।।
गर्दभ सजे सवारी तेरी, गहरा काला रूप।
लगे डरावन देख भगते, दानव दल के भूप।।५।।
शक्ति भक्ति की स्रोत हे माता, सकल सुमंगल दाता।
बल बुद्धि विद्या देती तू, कालरात्रि सुखदाता।।६।।
माँ का आठवांँ रूप (महागौरी):-
श्वेत वृषभ वाहन सजे, श्वेत वसन सत् रूप।
महागौरी माता शिवा, तेरी छवि अनूप।।१।।
वरमुद्रा धारण किये, त्रिशूल डमरू हाथ।
वाम अंग धारण किये, तुझको भोलेनाथ।।२।।
हे महिषासुर मर्दिनी, हे भक्तन भयहारि।
दानव दल का नाश करे, कहे बिजेन्द्र विचारी।।३।।
शान्त स्वरूप अनूप है, गौर वर्ण भुज चार।
सर्वताप भय हारणि, जग पर कर उपकार।।४।।
दूध दही प्रिय आपके, फल शरबत मिष्टान।
हार मोती कंगन सजे, श्वेतांबर परिधान।।५।।
बेली, चमेली, मोगरा, चंपा हरसिंगार।
गेंदा जूही गुलाब से, सजे सदा दरबार।।६।।
सुख समृद्धि नित बढ़े, अमन चैन सम्मान।
माता के आशीष से, उपजे उर सत् ज्ञान।।७।।
कर भक्ति जो आपकी, भवसागर तर जाय।
मन से हो मजबूत वो, सकल मनोरथ पाय।।८।।
माँ का नौवा रूप (सिद्धिदात्री):-
सकल सिद्धि की दाता माता, सिद्धिदात्री कहलाई।
ज्ञान भक्ति वर देकर मइया, भक्तों को हरसाई।।१।।
नवरात्रि के नवें दिन, जो तेरा ध्यान लगाये।
बढ़े आत्मविश्वास जगत में, सकल मनोरथ पाये।।२।।
शंख चक्र है गधा साथ में, कमल फूल है हाथ।
कमलासन आरूढ़ हो देती, प्रेम भक्ति का साथ।।३।।
सिद्ध यक्ष गंधर्व असुर सब, तेरा ध्यान लगाये।
सकल सिद्धियांँ पाकर वो, अमर लोक को पाये।।४।।
भक्तों का भय नाश किये, शुम्भ निशुम्भ बिडारे।
शेर सवारी कर जगदंबा, दानव दल संहारे।।५।।
चतुर्भुजी माँ सिंह वाहिनी, केसरिया परिधान।
कमल सिंहासन बैठी मांँ की, गौरवमयी पहचान।।६।।
धर्म कर्म से हीन भवानी, तेरा ध्यान लगाऊँ।
दो ऐसा आशीष हे माता, ज्ञान भक्ति वर पाऊँ।।७।।
माँ जगदम्बा के नवो रुप की स्तुति:-
दया करो अब हे जग जननी, तुम हो कृपा निधान।
तेरे रूप अनेक हैं माता, कैसे करूंँ बखान।।१।।
शैलपुत्र है प्रथम रूप माँ, ब्रह्मचारिणी दूजा।
चंद्रघंटा का रूप तीसरा, करूंँ में निश दिन पूजा।।२।।
कुष्मांडा का रूप है चौथा, पांचवा स्कंधमाता।
कात्यायनी के रूप में हो तुम, सबकी भाग्य विधाता।।३।।
सप्तम रूप में कालरात्रि बन, तू दृष्टों को मारे।
महागौरी बन हे मइया, संतन के काज सँवारे।।४।।
नवी रूप में सिद्धिदात्री बन, सिद्ध करे प्रदान।
तेरे यश की गाथा माता, गाता सकल जहान।।५।।
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