साहितयाकाश में प्रेमचंद जी
प्रेमचंद जयंती पर विशेष रचना
✍️किरण बरेली
रोटियों के सेंकते वक्त
ज़ेहन में एक ख्याल आ जाता है
प्रेमचंद के तीन पैसों का चिमटा
बालक हामिद खरीद लाया है।
बेहिसाब दादी की मुहब्बत में
उनकी तकलीफों को याद रखना
रोटियों को सेंकते समय
दादी की उंगलियों का जल जाना।।
बदले हालात हुए ऐसे हामिद कहा न
अब कोई चिमटे से वाकिफ नहीं
मोबाइल की तिलस्मी दुनिया में
मासूमियत अब बची है कहां ॽ
काश मुहब्बत का सिला फिर मिले
उर्दू ज़ुबां की महान हस्ती को सलाम
साहित्य के आकाश में ऐसे
नायाब सितारे बार/बार जगमगाएं।