हिंदी लोकभाषा साहित्य
समकालीन मगही कविता लेखन को नयी भाव भंगिमा प्रदान करने वाले कवि: मथुरा प्रसाद नवीन
✍️राजीव कुमार झा
मथुरा प्रसाद नवीन से मेरा व्यक्तिगत परिचय नहीं था। इससे मेरा आशय आपसी जान पहचान से है लेकिन बड़हिया में अक्सर वह मुझे बाज़ार में अकेले घूमते दिखाई देते थे। इससे पहले मनोज कुमार झा जब उनकी कविताओं को संपादित करके राहे राह अनहरिया कटतो संग्रह के प्रकाशन में संलग्न थे तब उन्होंने मुझे उनका आडियो इंटरव्यू भी सुनाया था जो उनके द्वारा लिया गया था। मथुरा प्रसाद नवीन को मेरे पिता जी भी जानते थे लेकिन मेरी तरह से उनसे उनका भी कोई आपसी परिचय नहीं था। मेरे पिता का कविताओं से लगाव था और जब वह बीडीओ थे तब भी और आगे सहरसा में जब वह कार्यपालक दंडाधिकारी के पद पर कार्यरत थे उस समय भी सुबह दफ्तर जाने से पहले शहर के कवियों से उनका काव्य पाठ सुनते उनको मैंने क ई बार देखा था। मथुरा प्रसाद नवीन से बड़हिया में सबका लगाव था।
मैं उनके व्यक्तिगत जीवन के बारे में कोई बातचीत नहीं करना चाहूंगा। नवीन जी के पास में कभी कोई नौकरी चाकरी नहीं रही। खेती बाड़ी का पुराना पैतृक कार्य भी उनसे नहीं चल पाया। खैर ...जैसे तैसे जीवनयापन और पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन उन्होंने किया और मुख्य रूप से एक कवि के रूप में बड़हिया के साहित्यिक परिदृश्य पर उनका नाम सदैव स्मृतियों में कायम रहेगा। मथुरा प्रसाद नवीन की कविताओं में देश और समाज का विषम यथार्थ बेचैनी के भावों की तरह से प्रकट हुआ है। उन्होंने मगही कविता लेखन को नयी भाव भंगिमा प्रदान किया है।
" जहां कमाबे वाला नय खाय
वैसन देश रसातल जाय '
मथुरा प्रसाद नवीन ने अपनी कविताओं में सामाजिक न्याय के भावों को प्रकट किया है और शोषित तबकों के रूप में गरीब किसान मजदूर तबकों के प्रति उनके मन में सदैव वेदना का भाव समाया रहा। व्यंग्यात्मक शैली में अपने भावों को प्रकट करने में उनके जैसा उस्ताद मगही कविता में क्या खड़ी बोली हिन्दी में भी ढ़ूंढ़ने पर भी दिखाई नहीं देगा।

