गीत
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रोज़ छपे अखबारों में.....
✍️ कृष्ण चतुर्वेदी, बूंदी, राजस्थान
जग सोएं हम जागे रहते....
.......ढूंढें तुम्हें सितारों में।
तुमने ऐसा दर्द दिया है.....
.........रोज़ छपे अखबारों में।।
प्रश्न कठिन हो जीवन के तो...
........ रहती दूर सफलता है।
यहाँ प्रतीक्षा रहती सबको....
.......क्या परिणाम निकलता है।।
हम खोए-खोए रहते है...
..........भीड़ भरें बाजारों में।
तुमने ऐसा दर्द दिया है....
.......रोज़ छपे अखबारों में।।
पहले जब बादल छाते थे.....
..........घोर घटा बन जाते थे।
तुम आते थे ऐसे जैसे,
.........सावन तक शरमाते थे।।
यादों के बगुले बैठे अब.......
........ भरे हुए दरबारों में।
तुमने ऐसा दर्द दिया है...
......रोज छपे अखबारों में।।

