गरीब परिवार (कहानी)
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एक छोटे से गाँव में रामू नाम का एक गरीब आदमी रहता था। उसके पास न ज़मीन थी, न बड़ा घर। मिट्टी की एक झोपड़ी, टूटा-सा चूल्हा और मेहनत करने वाले दो हाथ—यही उसकी पूरी दुनिया थी। उसकी पत्नी सीता सिलाई का काम करती थी और उनका छोटा-सा बेटा मोहन सरकारी स्कूल में पढ़ता था।
रामू रोज़ शहर जाकर दिहाड़ी मजदूरी करता था। कई बार उसे काम मिल जाता, तो कई बार वह खाली हाथ लौट आता। फिर भी घर में कभी शिकायत नहीं होती थी। सीता हमेशा मुस्कराकर कहती थी, “मेहनत से कमाया हुआ सुख ही सबसे बड़ा धन होता है।”
मोहन पढ़ाई में बहुत होशियार था। वह लालटेन की हल्की रोशनी में भी मन लगाकर पढ़ता रहता। एक दिन उसके शिक्षक ने कहा, “मेहनत करने वाला बच्चा कभी गरीब नहीं रहता।”
सालों की मेहनत रंग लाई। मोहन को छात्रवृत्ति मिली और उसने आगे की पढ़ाई पूरी की। एक दिन उसे अच्छी नौकरी मिल गई। उस दिन रामू की आँखों में खुशी के आँसू थे। उसने कहा, “हम गरीब थे, पर हमारे सपने कभी गरीब नहीं थे।”
आज भी उनका घर सादा है, पर खुशियों से भरा हुआ। उस परिवार ने यह साबित कर दिया कि सुख दौलत से नहीं, बल्कि आपसी प्यार और मेहनत से मिलता है।

