शब्द
/// जगत दर्शन न्यूज
गढ़े मढ़े रचते लिखे, पढ़े जाते हैं शब्द।
बोले तोले खोले और, टटोले जाते शब्द।।
बनते बिगड़ते संँवर जाते, निखर जाते हैं शब्द।
हंँसते रोते मुस्कुराते, गुदगुदाते हैं शब्द।।
मुखर प्रखर मधुर होते, खिलखिलाते हैं शब्द।
चुभते दुखते घाव बढ़ाते, दाँव लगाते हैं शब्द।।
लड़ते झगड़ते बनते भी, बिगड़ जाते हैं शब्द।
चलते बोलते दौड़ते भी, ठहरते भी हैं शब्द।।
रुकते चुकते थकते नहीं, मरे न मारे शब्द।
संयम बिन सम्मान के, काम बिगाड़े शब्द।।
तोड़े जोड़े शब्द सखे, शब्द हीं मिले मिलाय।
शब्द प्रबल संसार में, सुख-दुख शब्द समाय।
सारी रचना शब्द की, स्वर्ग-नरक एहसास।
शब्द करे दूरी कभी, शब्द बुलाये पास।।
शब्द हरि का रूप है, शब्द सृष्टि आधार।
बिना शब्द सब शुन्य है, कहै बिजेन्द्र विचार।।

