राजनीति और विज्ञान को मुँह चिढ़ा गया बागेश्वर धाम का दिव्य दरबार!
लेखक:
मनोज कुमार सिंह
राष्ट्रीय प्रवक्ता
अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति
पटना (बिहार): राजनीति के चौसर पर पनपे अंधविश्वास तथा विज्ञान के स्थापित मापदंडों के मिथक को तोड़कर आम जन-मानस के बीच स्वयंभू सत्ता स्थापित करने में सफल रहा बागेश्वर धाम का दिव्य दरबार। बिहार की राजधानी पटना में तरेत् के खुले मैदान में आयोजित बहुचर्चित संत धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की राम-कथा में उम्मीद से ज्यादा स्वयमेव उपस्थित आठ से दस लाख लोगों की भीड़ ने एक तरफ जहाँ अध्यात्म की तमाम पुरानी धारणाओं को नवीनता प्रदान करने में सफल रहा। वहीं बिहार की राजनीति के अनेक दिग्गजों के मन में बैठी भ्रांतियों को तार- तार करते हुए विज्ञान के स्थापित मापदंडों के उपर अध्यात्म की सत्ता को जीवंत कर गया।
पांच दिनों तक चली राम-कथा में मानव जीवन के पांच मूल मंत्रों क्रमशः सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह व ब्रम्हचर्य की सहज परिभाषित अभिव्यक्ति ने अध्यात्म पर दशकों से चल रही बहस को एक नया आयाम दिया। संत धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने अपने बचपन में घटी सच्ची घटनाओं के जरिये सामान्य जीवन में आम लोगों को उनके रिश्तों के ममत्व की न सिर्फ हकीकत बयां किया बल्कि अपनों से अपनेपन का वास्तविक अर्थ भी समझाया। सुदामा- चरित्र का वर्णन करते हुए लाखों श्रोताओं को उन्होंने इस बात का अहसास कराया कि जीवन के विपरीत हालात का धैर्य व दृढ़ता पूर्वक सामना करते हुए धर्म की धुरी पर अडिग रहने वाला मानव पूर्ण समर्पण के बाद ईश्वरत्व को प्राप्त हो हीं जाता है।
सम्प्रदाय विशेष के मुद्दे को लेकर बिहार में मचे राजनीतिक तूफान को सलीके से किनारा करते हुए अंतरराष्ट्रीय कथा-वाचक राम- कथा व श्रीमद्भागवत कथा से विमुख होकर डीजे की संस्कृति में ढल रहे अति उत्साही नौजवानों को धर्म का असली मर्म जताने में भी सफल रहे। वेद- पुराणों व प्रचलित धर्म ग्रन्थों के आख्यानों के माध्यम से हिंदुत्व को नए सिरे से परिभाषित कर प्रचीन कथानकों को उन्होंने एक बार पुनः जीवंत कर दिया। रामकथा के अंतिम सत्र में लगाए गए दिव्य दरबार के माध्यम से चारों युगों में प्रस्फुटित बाला जी महाराज का कृपा पात्र बनकर जीवन की सफलता के मूल-मंत्र को साक्षात साबित करके उन्होंने अपने ऊपर लगाए जा रहे आडंबर के तमाम आरोपों को शालीनता पूर्वक खारिज कर दिया।
बिहार की वर्तमान राजनीतिक गति जो जाति एवं दल के मोह में फंस कर बेपटरी हो रही थी, उसे ध्वस्त करते हुए सभी जातियों के लोगों को एक छतरी के नीचे लाकर शास्त्री जी ने एक संभावना जगाई है कि बिहार में आज भी धर्म के प्रति आम जनमानस में श्रद्धा भरी पड़ी है। फिर भी सुशासन के लिए राजनीति में धर्म- निरपेक्षता कायम रहनी चाहिए।