जाने- माने गजलकार अरविंद अंशुमन जी!
दिव्यालय एक व्यकितत्व परिचय में हुआ साक्षात्कार!
अतिथि- अरविंद अंशुमन
होस्ट- किशोर जैन
रिपोर्ट- सुनीता सिंह "सरोवर"
/// जगत दर्शन न्यूज़
ग़ज़ल अपनी अलग ही एहमियत रखती है। यह मानव जीवन के हर पहलू को छू लेती है, फिर वो आँसू हो, गम हो, दर्द हो,प्यार हो, गिला शिकवा हो या फिर यारी दुश्मनी हो। आज दिव्यालय एक व्यक्तित्व परिचय कुछ बातें कुछ यादें नई पुरानी में आज के मेहमान हैं आदरणीय अरविन्द अंशुमन जी।
क्या पाना है क्या खोना है अपना अपना गम ढोना है।
सारी दुनिया का महाभारत अपने भीतर ही होना है।
किशोर जैन- आप बिहार से हैं और फिलहाल धनबाद में रहते हैं, तो क्या कोई खास वजह है या झारखण्ड पसंद आ गया?
अरविंद अंशुमन- जी मै बिहार के सारण जिला का रहने वाला हूँ, मेरी प्रारंभिक शिक्षा यानी कक्षा तीन तक मैंने अपने ही गाँव के विद्यालय से की, उसके बाद गाँव दूसरे गाँव में हाइस्कूल किया। पूरी तरह से ग्रामीण परिवेश था हमारा आगे उच्च शिक्षा गोरखपुर युनिवर्सिटी से पूरी की। पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद मेरी नौकरी लग गयी और बतोर शिक्षक मेरी पहली पोस्टिंग धनबाद में हुई और फिर नौकरी के एक साल बाद ही मुझे मेरी जीवन संगिनी भी मिली फिर तो बस धनबाद का ही होकर रह गया।
किशोर जैन- आप एक उम्दा गजलकार हैं। गजलों पर आपकी 2 पुस्तकें दर्द के गाँव में और आईने के सामने आ चुकीं हैं। सर हमारी आपसे 1 ग़ज़ल के 2-3 शेर सुनना चाहेंगे।
अरविंद अंशुमन- दर्द ऑंखों से बहे तो गज़ल बनती है।
हसरते दिल में पिघलती तो गज़ल बनती है।।
पहले और आज के परिवेश में काफी बदलाव आया है। पहले इश्क़ और हुस्न पर गज़ल बनते थे, पर आज हर समसामयिक मुद्दे या सियासी मुद्दे पर भी गज़ल बनते हैं।
किशोर जैन- सर गज़ल के रूल्स और व्याकरण छंदों जैसे ही होतें हैं या कुछ अलग।
अरविंद अंशुमन- जी ग़ज़ल और छंद के व्याकरण में बहुत कुछ अलग है, गज़ल वज्न- के साथ काफिया- और रदीफ़- पर जोर दिया जाता है। मुख्यतः हम गजलों में उर्दू लफ़्ज़ों को लिखते हैं, जिससे ग़ज़ल के शेर जानदार और खूबसूरत बनते हैं, जबकि छंद में उर्दू शब्द वर्जित हैं।
किशोर जैन: आपको लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली!
अरविंद अंशुमन: मेरे पिता श्री एक अध्यपाक होने के साथ- साथ एक बहुत अच्छे साहित्यकार भी थे। मेरे चाचा श्री उस जमाने के अच्छे गायक थे। बस यूँ कह लिजीए की यह कला मेरे खून में शामिल है।
किशोर जैन: युवा पीढ़ी को आप क्या कहना चाहेंगे?
अरविंद अंशुमन: बस इतना ही की वक्त के साथ- साथ साहित्य ने भी करवट बदला है। जैसे पुराने साहित्यकारों की बात करें तो वे हर एक सामाजिक मुद्दे पर कलम चलाते थे। खास करके बुराइयों पर और रूढ़िवादी सोच पर फिर राजनीति जैसे मुद्दों पर भी तो एक मझा हुआ सफल लेखक, कवि या गीतकार वही है, जो अपने रचना और लेखनी के माध्यम से केवल मनोरंजन ही नहीं अपितु एक संदेश दे, जिससे समाज को नयी दिशा मिले।
अंत में बेहतरीन संचालन कर रहे यू.के. से किशोर जैन ने अपने अतिथि को धन्यवाद दिया। इस नेक व सराहनीय कार्य के लिए दिव्यालय की संस्थापक व कार्यक्रम आयोजक व्यंजना आनंद 'मिथ्या' और पटल अध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजक मंजिरी "निधि" 'गुल'जी को कार्यक्रम आयोजन के लिए धन्यवाद दिया तथा बताया कि इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण Vyanjana Anand Kavya Dhara यूट्युब चैनल पर लाइव हर बुधवार शाम सात बजे आप देख सकते हैं। या उसकी रेकॉर्ड वीडियो को बाद में देखा जा सकता है।