'मेरे शब्द - मेरे संस्मरण' की आज की महादेवी वर्मा है रति चौबे : डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा
लेखक परिचय : रति चौबे
पूरा नाम : रति दिनेश चौबे
शिक्षा: एम.ए.(डबल),एलएल.बी
पूर्व व्याख्याता
रुचि: लेखन, चित्रकारी, गायन,सामाजिक कार्य
संप्रति : "हिंदी महिला समिति"की
२३ वर्ष से अध्यक्षा, आल इंडिया ब्राह्मण संगठन नागपुर की अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला मंच की संयोजिका, अखिल भारतीय ब्राह्मण महिला मंच की अध्यक्ष,
पुस्तक : "मेरे शब्द" प्रथम संस्मरण (प्रकाशित) "सूर्पनखा" (अप्रकाशित)
'मेरे शब्द - मेरे संस्मरण' का लोकार्पण
नागपुर (महाराष्ट्र) : हाल ही में विदर्भ हिंदी साहित्य सम्मेलन के उत्कर्ष सभागृह में श्रीमती रति चौबे (हिंदी महिला समिति और आल इंडिया ब्राम्हण संगठन की अध्यक्ष) रचित एक पुस्तक पुस्तक 'मेरे शब्द' का लोकार्पण हुआ। इस अत्यंत अविस्मरणीय तथा रोचक पुस्तक का लोकार्पण वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सागर खादीवाला की अध्यक्षता में डिम्ड यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा के द्वारा किया गया। इस समारोह में उपस्थित मुख्य अतिथियों में मुख्य रूप से 'जीरो माइल फाउंडेशन' के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार डॉ. आनंद शर्मा, वरिष्ठ साहित्यकारा श्रीमती इंदिरा किसलय तथा महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के सदस्य अविनाश बागड़े आदि विशेष रूप से उपस्थित थे।
इस क्रम में आचार्य हरिओम के द्वारा मंत्रोच्चार और आध्यात्मिक व साहित्यिकता के अनोखे संगम ने समारोह में चार चांद लगाते हुए इसे यादगार बना दिया। डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा ने अपने वक्तव्य में कहा कि 'संस्मरण कभी काल्पनिक नहीं होते। ये जीवन के अंश होते है। रति जी के तो सारे संस्मरण दिल को छूने वाले, मार्मिक और वास्तविक हैं। संस्मरण लेखन में छायावाद की महादेवी वर्मा जी के बाद यदि वर्तमान में रति चौबे का नाम लिया जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस कथन के आते ही दर्शकदीर्घा से तालियों की गड़गड़ाहट उठने लगी जिससे सभागृह गूंज उठा।
इस क्रम में अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एवं चर्चित कवि प्रा. मधुप पाण्डेय ने अपनी प्रस्तावना में बताया कि 'जीवंत हैं संस्मरण' संस्मरणों के भाव को अपने अंतर्मन में अनुभूत कर उसे अभिव्यक्त करना बहुत ही कठिन कार्य होता है, परंतु रति जी ने यहां अत्यंत कुशलता के साथ अपनी लेखनी में उतारा है। उक्त प्रस्तावना का सरस एवम सहज पठन श्रीमती नैनका चौबे के द्वारा किया।
वरिष्ठ साहित्यकारा विदुषी श्रीमती इंदिरा किसलय ने अपने समीक्षात्मक उद्बोधन में कहा कि इस पुस्तक 'मेरे शब्द' के संस्मरण अंश इतिहास गंध, विशिष्ठ कालांश की रंग रेखाओं का भावभीना सौंदर्य, मर्मस्पर्शी तथा रोचक घटनाओं की परिक्रमा, पारदर्शी सत्य की बानगी, सबके बीच सरस्वती के जैसे काव्यधारा, इन सभी के संयोग से ही साकार हुए है। हर संस्मरण उनकी यादें तथा संवेदना के धरातल पर गहरी छाप छोड़ती है। 24 कैरेट सोने के समान ही हर संस्मरण बन कर उभरा है जो बिल्कुल अनमोल है। उन्होंने इसे पद्म सिंह शर्मा, रामवृक्ष बेनीपुरी, देवेंद्र सत्यार्थी, कन्हैया लाल मिश्र तथा प्रभाकर के साहित्यिक शिल्प की छुवन बताया।
डॉ. आनंद शर्मा के द्वारा भी शुभकामनाओं के साथ अत्यंत कम शब्दों में बहुत कुछ बयां कर दिया गया।
डॉ. सागर खादीवाला ने भी अपने विचारों को रखा और कहा कि 'संस्मरण बहुत ही बेबाक होकर लिखा गया है। कहीं भी कपोल कल्पित नहीं है। रति जी के संस्मरण बेहद स्मरणीय और सराहनीय है। उन्होंने सुझाव दिया कि रतिजी को भविष्य में अपनी आत्मकथा के साथ भी प्रस्तुत होना चाहिए।
इस कार्यक्रम में अविनाश बागड़े का संचालन भी अत्यंत नपातुला, सारगर्भित, रोचक एवम बेहद प्रभावशील रहा। उन्होंने संस्मरण बने दिनेश जी को इस कृति को समर्पित करने के निर्णय को रति जी के जज्बे को मर्मस्पर्शी बताया। इस क्रम में वे बीच बीच में 'मेरे शब्द' के हर संस्मरण पे अपने विचार भी प्रगट करते दिखे। अविशा प्रकाशन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम को अत्यंत सफल बनाने में राष्ट्र पत्रिका के संपादक श्रीकृष्ण नागपाल और वरिष्ठ पत्रकार श्रीमती पूर्णिमा पाटिल की भी भूमिका अतुल्यनीय था।
अंत मे लेखिका रति चौबे ने अपने मंतव्य में बताया कि आज मैं पूर्णरूप से अपने हृदय वाटिका को कोमल धरा में ऐसे रोपित बीज बिखेर रही हूं ,जो मेरे हृदय में वर्षों से समाएं हुए है। इनको मैं वर्षों से थपकियां देते हुए प्यार से ऐसे सींचती रही हूँ , कि जलाशय कभी हृदय में सूखा ही नहीं। मेरे संस्मरण वास्तविकता के साथ, मेरे जीवन के सारे अंश लिए है जो मरण तक हृदय व मस्तिष्क से नहीं जाएंगे। ये संस्मरण शायद मेरी चिता के साथ ही भस्म होंगे, सबके लिए एक मुझे संस्मरण बनाकर .. पर 'मेरे शब्द' संस्मरण बन कर खिलते रहेंगे सदा और सर्वदा। यह संस्मरण मेरे आत्मिक संस्मरण बने 'दिनेश' जी को समर्पित हैं।
कार्यक्रम का आभार अभिव्यक्ति प्रख्यात व्यंग्य शिल्पी अनिल मालोकर के द्वारा किया गया। इसी क्रम में हिंदी महिला समिति के उपाध्यक्ष डा० चित्रा तूर द्वारा संस्था पर और रति जी पर प्रकाश डाला गया साथ ही साथ उत्कर्ष चौबे ने बहुत ही रोचक ढंग से अपनी दादी के लेखन पद्धति को सबके सामने रहस्योद्घाटित भी किया।
कार्यक्रम के सफलतर्थ सखियों ऐशा चटर्जी, रश्मि मिश्रा, पूनम मिश्रा, रेशम मदान, चित्रा तूर, सुजाता दुबे, ममता शर्मा तथा नीलम शुक्ला आदि ने भी अथक प्रयत्न किए।
सबसे रोचक मीना तिवारी की सरस्वती वंदना पर नृत्य प्रस्तुति, रश्मि मिश्रा और हंसा बेन का स्वागत गीत बहुत ही सराहनीय रहे। इसी क्रम में उत्कर्ष चौबे ने तिलक लगा कर अतिथियों का स्वागत किया। समारोह में हिंदी महिला समिति की सभी सदस्य बहनें बड़ी संख्या में उपस्थित रहीं। आल इंडिया ब्राम्हण संगठन, अखिल भारतीय ब्राम्हण मंडल और अविशा प्रकाशन द्वारा पुष्प गुच्छ प्रदान कर लेखिका श्रीमती रति चौबे को सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में महिला जागृति मंच और कई अन्य संगठनों के सदस्यों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।