निहारती ये आँखे
जाने कब से बाट जोह रही हैं
ये आँखे पथराई सी हुई जा रही हैं।
इंतजार की यह सभी घड़ियाँ
उदास थकी जा रही हैं
बिताए नहीं बीतते
पल-पल बेहद जिद्दी हुए जा रहें हैं
उस क्षण का मनुहार करूँ
उन शुभ आहटों का आह्वान करुँ
जिसमें तेरे आने की दस्तक हो
इत्र-इत्र हवाएँ
चंचल- चपल इन्हें थाम लूँ
जिसमें केवल तेरी ही तेरी
गूंज शामिल हों।
अब तो तुम चले आओ।