रक्षाबंधन
*******
✍️ रति चौबे, नागपुर (महाराष्ट्र)
रक्षाबंधन
बहनों का त्योहार
अटूट रिश्ता/
गंगाजल सा-
पावन यह रिश्ता
भाई-बहिन/
उपवन सा
खिलता है पुष्पों सा
अनुपम है/
युग बदले
भावनाएं बदली
छलकपट
मौली के धागे
रक्षासूत्र जहां थे
केवल धागे/
प्रेम सागर
जहां भोली मुस्कानें
आडम्बर है/
.
बिन बहना
सूनी जहां देहरी
अब कल्पना/
. नि:स्वार्थ त्याग
रिश्तों में पनपता
स्वार्थमय है/
. एक खिंचाव
भावामय निधि थी
आज नैराश्य/
घर का पथ
भूल गए हैं दोनों
माधुर्य नहीं/
जान कुर्बान
जहां मुंहबोली थी
जां बचाते हैं/
.अंहकार है
धागे मौली या चांदी
प्रतिस्पर्धा है/
भाई कहता
सबकुछ मेरा है
अस्तित्व नहीं /
गुडिया सी वो
जब हुई पराई
रिश्ते पराये/
बहना कभी
घर का थी गहना
आज बहाना/
किलकारियां
.गूंजता हर कौना
खामोशियों हैं/
बिन घेरे ही
गऊंन सी बिटिया
घिर जाए रे/
आज बहना
कहना रिवाज है
बहता झरना/
अपनापन
भावना ना कीमती
धनाभाव/
कहो ये झूठ
सच है हकीकत
कटु सत्य है ???
..........