संक्षिप्त महाभारत (काव्य रूप)
✍️ बिजेंद्र कुमार तिवारी
पाण्डु पुत्र पाण्डव भये, कौरव धृतराष्ट्र संतान।
हस्तिनापुर वैभव भरा, जानत सकल जहान।।
धर्म रथी पाण्डव हुए, कौरव मती अति खोट।
बात-बात पर घात करै, करत हृदय मँह चोट।।
लक्षागृह में आग लगाया, दुर्जन दुर्योधन भारी।
हरि कृपा से सब बचे, कहत बिजेन्द्र बिचारी।।
जूए में छल कर जीता, मामा शकुनि साथ।
चीर हरण करे दुष्ट दुशासन, लाज बचाये नाथ।।
बारह वर्ष वनवास बताये, विकट यातना झेले।
द्रौपदी संग पांचों भाई मिल, विविध विघ्न से खेले।।
वेश बदल अज्ञातवास की, अवधि पूर्ण बिताये।
ताकत का लोहा वो अपनी, दुनिया में मनवाये।।
हक हिस्से के कारण उपजा, कुरू पाण्डव मँह भेद।
अधम अधर्मी दुर्योधन की, भई मति मँह छेद।।
शांति सुखद प्रस्ताव लिए, हस्तिनापुर हरि आये।
विविध रंग में, विविध ढंग में, वो सबको समझाये।।
बात ना माना दुर्योधन की, सभा मध्य अपमान।
विस्तारा निज रूप हरि ने, मिटा सकल अभियान।।
नाश खड़ा हो पास सखे, सत् बात समझ ना आये।
महामूढ़ दुर्योधन सबको, अटपट ज्ञान बुझाये।।
महाभारत हुई घोर, द्रोण, भीषम नहीं आये काम।
हीत मीत परिजन को झोंका, अंत गया सुरधाम।।
कुंती सुत की रक्षा की हरि, कौरव स्वर्ग पठाये।
सत्य मार्ग समरथ है जग में, ये सबको समझाये।।
महाभारत का मूल मंत्र है, दया, प्रेम सद्भाव।
सत् पथ गामी बनो सदा, हरि से रखो लगाव
महाभारत का लघु रूप यह, जो नर सुने सुनाये।
सहज भक्ति की राह पर चलके, परम गति को पाये।।
✍️ बिजेन्द्र कुमार तिवारी (बिजेन्दर बाबू)
ग्राम:- गैरतपुर, पोस्ट:- घोरहट मठिया
थाना:- माँझी, जिला:- सारण
बिहार, संपर्क: 7250299200