तेरी नज़र से ही खुद को पहचाना मैने!
डाॅ.कंचन मखीजा
ए ज़माने!
तेरी नज़र से ही खुद को पहचाना मैने।
हूँ मैं किस मिट्टी की, अपनी हस्ती को जाना मैने ।
है सितम करने की आदत तेरी तो..
तेरी नज़र से ही खुद को पहचाना मैने।
हूँ मैं किस मिट्टी की, अपनी हस्ती को जाना मैने ।
है सितम करने की आदत तेरी तो..
बदलने की जिद्द को ठाना मैने।
कभी दर किनारे किया तो कभी उठाकर फेंक दिया..
और कभी उस पत्थर को अपने ही गहने का हीरा माना मैने।
पी जाते हैं कभी ग़म और कभी छलक जाते हैं ये अश्क, प्यार का मरहम बनता कैसे ये इनसे जाना मैने।
बन गया नासूर जब जख़्म कोई पुराना,
कभी दर किनारे किया तो कभी उठाकर फेंक दिया..
और कभी उस पत्थर को अपने ही गहने का हीरा माना मैने।
पी जाते हैं कभी ग़म और कभी छलक जाते हैं ये अश्क, प्यार का मरहम बनता कैसे ये इनसे जाना मैने।
बन गया नासूर जब जख़्म कोई पुराना,
जाना तुझसे तेरा दर्द छुपाना मैने।
ख्वाबों से तो कभी यादों से बहलाया इस दिल को,
ढूंढ़ा अब किसी गमज़दा की खुशी का बहाना मैने।
करते हो मुहब्बत तुम हमसे गुमाॅ ऐसा कुछ हो चला जब.. सीखा नकाबपोश बाशिंदों को आँख दिखाना मैने।
जला कभी आशियाँ तो भरोसा कभी.. तपा कर उस राख को मकाॅ उजला बना डाला मैने।
हुई बारिश ना उम्मीदी की जब-जब,
वक्त से मांग कर सब्र तब तब,
ख्वाबों से तो कभी यादों से बहलाया इस दिल को,
ढूंढ़ा अब किसी गमज़दा की खुशी का बहाना मैने।
करते हो मुहब्बत तुम हमसे गुमाॅ ऐसा कुछ हो चला जब.. सीखा नकाबपोश बाशिंदों को आँख दिखाना मैने।
जला कभी आशियाँ तो भरोसा कभी.. तपा कर उस राख को मकाॅ उजला बना डाला मैने।
हुई बारिश ना उम्मीदी की जब-जब,
वक्त से मांग कर सब्र तब तब,
जिंदगी की छत पे छाता लगा डाला मैने।