जीवन जीने की कला: त्रिवेणी
आहार, विचार और व्यवहार
✍️डॉ. कंचन मखीजा
यह कोई साधारण विषय नहीं है। यह वह गूढ़ विज्ञान है जो जीवन को सिर्फ भौतिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं रखता, बल्कि उसे पूर्णता की ओर ले जाता है। आज जब जीवन भागदौड़ और तनाव से भरा हुआ है, तब जीवन की गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि हम क्या खाते हैं, क्या सोचते हैं और कैसे रहते हैं। ये तीनों तत्व किसी मनुष्य के व्यक्तित्व, स्वास्थ्य, संबंध और आत्मिक उन्नति की नींव होते हैं। भारतीय और पाश्चात्य दर्शनशास्त्र दोनों में इन तीन आयामों को अत्यंत महत्व दिया गया है।
एक संतुलित आहार शरीर को शक्ति देता है, सकारात्मक विचार मन को ऊर्जावान बनाते हैं और सात्विक व्यवहार आत्मा को प्रकाशित करता है। इस लेख में हम इन तीनों आयामों को महान दार्शनिकों के उद्धरण और एक प्रेरणादायक कविता के माध्यम से समझेंगे।
1. आहार: जैसा खाओ अन्न, वैसा बने मन
भारतीय आयुर्वेद के अनुसार, "अन्न से मन निर्मित होता है।" मनुष्य जो खाता है, उसका सीधा प्रभाव न केवल शरीर बल्कि चित्त पर भी पड़ता है। सात्विक आहार – जैसे फल, सब्ज़ियां, दूध, अन्न – मन को शांत, संयमित और ध्यान योग्य बनाते हैं। वहीं, राजसिक और तामसिक आहार - जैसे अधिक मसालेदार, माँसाहारी, शराब या जंक फूड - मन को अस्थिर और अशांत करते हैं।
महात्मा गांधी ने कहा था: “शरीर को मंदिर मानो, और उसे अपवित्र आहार से दूषित मत करो।”सुकरात का विचार था: “हम जीने के लिए खाते हैं, न कि खाने के लिए जीते हैं।”यह स्पष्ट करता है कि आहार संयम का विषय है, तृप्ति और आवश्यकता के बीच संतुलन का नाम है।
2. विचार: जैसा सोचोगे, वैसा ही बनोगे
विचार शक्ति वह ऊर्जा है जो मनुष्य को ऊँचाई या पाताल तक पहुँचा सकती है। विचार न केवल कर्मों को जन्म देते हैं, बल्कि व्यक्तित्व, आत्मा और भाग्य को भी आकार देते हैं।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था:
“We are what our thoughts have made us; so take care of what you think. Words are secondary. Thoughts live; they travel far.”
लाओ त्से कहते हैं:
“Watch your thoughts; they become your words. Watch your words; they become your actions.”
सकारात्मक सोच जीवन में प्रकाश लाती है, वहीं नकारात्मक विचार अंधकार की ओर ले जाते हैं। नियमित ध्यान, सत्संग, और अध्ययन से विचारों को निर्मल और ऊर्जावान बनाया जा सकता है।
3. व्यवहार: कर्म की परछाईं है आपका आचरण
व्यवहार वह दर्पण है जिसमें हमारे संस्कार, शिक्षा और विचार झलकते हैं। किसी भी सभ्यता, समाज और व्यक्ति को पहचानना हो तो उसके व्यवहार को देखो। नम्रता, सहानुभूति, सत्यनिष्ठा और सेवा – ये जीवन की व्यवहारिक नींव हैं।
कन्फ्यूशियस ने कहा:
“Respect yourself and others will respect you.”
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
“सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते।”
(जो सब में एक ही आत्मा को देखता है, वही श्रेष्ठ आचरण करता है।)सच्चा व्यवहार वह है जो स्वार्थ से रहित, प्रेम से पूरित और समानता से युक्त हो। व्यवहार केवल दूसरों के साथ नहीं, स्वयं से भी होता है। आत्मसम्मान भी इसी से आता है।
आहार, विचार और व्यवहार – ये कोई तीन पृथक विषय नहीं हैं। ये जीवन की त्रिवेणी हैं, जिनमें स्नान कर लेने से आत्मा शुद्ध होती है। यदि हम सात्विक आहार लें, सकारात्मक विचार अपनाएं और नम्र, सहृदय व्यवहार रखें, तो हम न केवल अच्छा मनुष्य बनते हैं, बल्कि समाज में भी उजाला फैलाते हैं।आज की भागती दुनिया में यदि कोई जीवन को सच्चे अर्थों में संतुलित, शुद्ध और आनंदमय बनाना चाहता है, तो उसे इस त्रयी को जीवन में उतारना होगा।शरीर को मंदिर, मन को पुजारी, और व्यवहार को पूजा बना दो, यही जीवन की सच्ची साधना है।” हम केवल जीवन नहीं जी रहे हैं, हम एक चेतना को अनुभव कर रहे हैं।”
यदि हर व्यक्ति इस जीवनशैली बना ले, तो न केवल उसका व्यक्तिगत जीवन सुधरेगा, बल्कि समाज और राष्ट्र भी आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत होंगे। यही सच्चा विकास है, यही है जीवन जीने की दिव्य कला।