मातृ दिवस: हिन्दी महिला समिति, नागपुर द्वारा तीन पीढ़ियों का एक भावनात्मक मिलन!
नागपुर (महाराष्ट्र): 'मां' — एक ऐसा शब्द जो सिर्फ पुकार नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन का आधार है। इसी भावना को समर्पित अवसर मातृ दिवस पर नागपुर की प्रतिष्ठित संस्था ‘हिन्दी महिला समिति’ ने एक अत्यंत भावनात्मक और प्रेरणास्पद कार्यक्रम का आयोजन किया। समिति की अध्यक्ष रति चौबे जी के नेतृत्व में यह आयोजन सम्पन्न हुआ, जिसमें समाज की विभिन्न वर्गों से आई माताओं और उनकी बेटियों ने भाग लिया।
कार्यक्रम की विशेषता यह रही कि इसमें तीन पीढ़ियां एक साथ मंच पर उपस्थित रहीं, जिसने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। इस अनूठे मिलन में हर उम्र की महिलाओं ने मां के प्रति अपने विचार, अनुभव और भावनाएं साझा कीं, और कहीं न कहीं हर वक्ता की आंखें मां की स्मृति में नम होती चली गईं।
वक्तृत्व और काव्य में उभरा मातृत्व का स्वरूप
कार्यक्रम में प्रतिभागी महिलाओं ने अपने वक्तव्यों और कविताओं के माध्यम से मां के अनेक रूपों को उजागर किया — एक गुरु, एक साथी, एक संरक्षक और एक अटूट प्रेम की मूर्ति के रूप में।
मंजू पंत जी ने कहा, “मां केवल जननी नहीं, प्रथम गुरु है। वह गलत होने पर काली बनती है और हमारी इच्छाओं की पूर्ति के लिए लक्ष्मी।”
कविता परिहार जी ने कविता के माध्यम से कहा, “मां धूप-छांव हैं, मगर उनकी ममता अथाह है। मां स्नेह की सरिता है।”
पूनम मिश्रा जी ने मातृत्व को घर की रचना से जोड़ा, “मां भोर का सूरज, घर की चौखट और सांझ की रसोई की गर्माहट है।”
सुनीता शर्मा जी ने मां की निस्वार्थ भावना को रेखांकित करते हुए कहा, “मां ने जीवन भर देना सीखा, कभी कुछ अपने लिए नहीं चाहा।”
अपराजिता राजोरिया जी ने कहा, “मौत के रास्ते भले अनेक हों, पर जीवन पाने का एकमात्र मार्ग मां ही है। अगर तक़दीर लिखने का अधिकार मां को होता तो हमारे हिस्से कभी ग़म न आते।”
कविता कौशिक जी ने कहा, “मां की डांट में भी ममता होती है और उनका आंचल हमारी सभी कमजोरियों को ढक लेता है।”
मां: सरलता, सादगी और सृजन का प्रतीक
निवेदिता पाटनी जी ने कहा, “मां की सादगी, सरलता और समझ उसकी सबसे बड़ी पहचान है। वह बिना कहे सब कुछ समझ जाती है।”
गार्गी जोशी जी ने मां को सखी, संगिनी और गुरु की संज्ञा दी और कहा, “मां वो धागा है जो पूरे परिवार को एक माला में पिरोए रखती है।”
सुषमा अग्रवाल जी ने मां को वीरांगना कहते हुए कहा, “मां वह शक्ति है जो खुद अंधकार में रहकर बेटियों को प्रकाश की ओर ले जाती है।”
सचिव रश्मि मिश्रा जी ने भावनात्मक अंदाज़ में कहा, “मां ने जब वो सब काम करने शुरू कर दिए जो भगवान करते थे, तो भगवान बेरोज़गार हो गए।”
रेखा पाण्डेय जी ने मां की सहजता और त्याग को नमन करते हुए उन्हें अपनी प्रेरणा बताया।
अध्यक्ष रति चौबे जी ने अपने विचार साझा करते हुए कहा, “मां का आंचल इतना मधुर है कि उसे खींचकर जीने की इच्छा होती है, पर मां शाश्वत है, वह कहीं जा ही नहीं सकती।”
नीता चौबे जी ने कहा, “मां के बिना जीवन अधूरा है, वह भाव है, जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता।”
अर्चना चौरसिया ने अपनी भावनाएं एक मधुर गीत के माध्यम से प्रकट कीं।
विमलेश चतुर्वेदी जी ने कहा, “मां से ही जीवन की हर ऊंचाई पाई है, उन्होंने ही हमें जीना सिखाया।”
गीतू शर्मा जी ने मां को करुणा, सौम्यता और स्नेह की प्रतिमूर्ति बताते हुए कहा, “मां की छाया में ही जीवन को रूप और रंग मिला है।”
कार्यक्रम की आत्मा: भावनाओं का संगम
यह कार्यक्रम केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि एक भावनात्मक संगम था, जहां हर वक्ता ने न केवल अपनी मां को याद किया, बल्कि अपने भीतर की मां को भी पहचानने का प्रयास किया। मातृत्व के विविध रूपों को शब्दों, गीतों और भावों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। दर्शकों के लिए यह कार्यक्रम एक आत्मीय अनुभूति बन गया।
हिन्दी महिला समिति द्वारा आयोजित यह आयोजन नारी शक्ति, स्नेह और संस्कारों का जीवंत उदाहरण बना। यह न केवल माताओं के प्रति श्रद्धा का प्रतीक था, बल्कि मातृत्व को जीने और समझने का माध्यम भी।