धरती के स्वर्ग में बहता निर्दोषों का खून: कब रुकेगा आतंक का सिलसिला?
- आतंकवाद का सामना: एकजुट भारत की पुकार
- धर्म के नाम पर नहीं, मानवता के पक्ष में लड़ाई जरूरी
- भारत में आतंकवाद: सवाल भी उठे, संकल्प भी जागे
धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला भारत का अभिन्न अंग जम्मू कश्मीर के पहलगाँव में पिछले दिनों अपने इष्ट मित्र अथवा परिजनों के साथ सैर सपाटे के उद्देश्य से सैलानी बनकर गए 28 भारतीय नागरिक आतंकवादियों की गोली का शिकार बनकर असमय काल कवलित होकर स्वर्ग सिधार गए। इस लोमहर्षक घटना के बाद से देशवासी प्रतिशोध की आग में जल रहे हैं,स्वाभाविक भी है। अधिकांश लोगों का कहना है कि इस बार कोई तर्क नही चलेगा। पाकिस्तान पर हमले से छोटा दण्ड लोगों को मंजूर नहीं है।यह एक अजीब सी विडंबना है कि अपने देश में पिछले लगभग आठ वर्षों से घट रहीं अधिकाँश घटनाओं को येन केन प्रकारेण जाति धर्म अथवा सम्प्रदाय से जोड़ने की एक परिपाटी सी चल पड़ी है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए निश्चित तौर पर यह एक खतरनाक सँकेत की आहट है। आतंकवादियों ने सैलानियों से उनका धर्म पूछकर उन्हें गोलियाँ दागीं। लेकिन आतंवादियों से भिड़ने आया वह भी मुसलमान,होटल वाला मुसलमान,खच्चर पर ढोने वाला मुसलमान और तो और इलाज करने वाला डॉक्टर मुसलमान। मौके से नदारद सिर्फ पुलिस और अर्द्ध सैनिक बल के जवान। सरकार से जबाब माँग रहे देश के लोगों को संतुष्ट करने के लिए आतंकवादियों तथा उनके अड्डों का सफाया सरकार को त्वरित करना ही चाहिए। घटना के बाद से सोशल मीडिया में लोगों के अलग अलग तरह के सवाल तैर रहे हैं।
हम सब हिन्दू राष्ट्र की दहलीज पर खड़े हैं। हमारे देश में मजबूत सरकार भी काम कर रही है। सरकार की हनक,धमक और धौंस से आज विश्व के अधिकाँश देश हमारे सामने नतमस्तक भी हैं। फिर ये आतंकवादी किसके बलबूते सिर उठाने में सफल हो जा रहे हैं। जैसा कि आप सब जानते हैं,आतंकवाद का समूल नाश करने के लिए सरकार ने देश में नोटबन्दी लागू की थी। आतंकवाद के सफाए के लिए सरकार ने पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक भी किया था। आतंकवाद के सफाए के लिए हमारी सरकार नित नए सैन्य सर्च ऑपरेशन भी चलाती है। बावजूद इसके आज भी आतंकवाद हमारे देश के लिए खतरा बना हुआ है। क्या वजह है। कारण ढूंढना होगा। वर्षों बाद भी पुलवामा हमले में मारे गए जवानों की आत्मा चीख चीख कर गुनाहगारों को सामने लाने की सरकार से गुहार लगा रही है। सरहद पर शायद ही कोई महीना बीतता है जिसमें सेना के जवानों के खून से हमारी धरती लाल नही होती। देश के बाहर,देश के भीतर राजनीतिक दलों के कैम्प में बैठे नेताओं के साथ साथ सरकार में शामिल नेताओं के कार्यकलापों की भी संचार माध्यमों के जरिये गहराई से जाँच की जानी चाहिए ताकि आतंकवाद की घटना का सिलसिला दुहराने का कोई दुस्साहस नही कर सके। आतंकवादी घटनाओं को लेकर किसी समुदाय विशेष को शत प्रतिशत दोषी ठहराना किसी भी दृष्टिकोण से न्याय संगत नही होगा। उदाहरण के तौर पर वर्ष 1984 में हुए सिक्ख दंगों से सबक लिया जा सकता है। अस्सी के दशक में शत प्रतिशत सिख्खों को देश द्रोही की संज्ञा से आरोपित किया गया था। तब सिख्खों का भयंकर नरसंहार हुआ था। दुबारा यही भूल एक समुदाय विशेष को दोषी बताकर किये जाने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। देश की आजादी के बाद संगठित व संरचनात्मक ढांचे के साथ खिलवाड़ करके हम सुगठित राष्ट्र का निर्माण कदापि नही कर सकते। इतिहास गवाह है देश की जनता का मिजाज अमूमन प्रत्येक दशक के बाद बदलते रहा है। लोग भूले नहीं हैं जब महज पाँच जवानों के सिर काट ले जाने से आक्रोशित देश के लोगों ने लगातार दस वर्षों से भारत की सत्ता पर काबिज मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार को बेदखल कर दिया था। राजनीतिक रूप से कभी भी किसी को मुगालते में नहीं रहना चाहिए। देश की जनता का मिजाज एक छोटी भूल पर भी करवटें बदलने लगता है।अपराध करने वाला कोई भी अपराधी अथवा आतंकी हमेशा से अधार्मिक ही रहा है। धर्म का पालन करने वाला कभी अपराध कर ही नही सकता चाहे वह हिन्दू हो अथवा मुसलमान।