मसरख में आयोजित नौ दिवसीय श्री रुद्रा महायज्ञ के समापन के दौरान महामंडलेश्वर गजेंद्र दास ने बीके आराधना और पूनम बहन को किया सम्मानित!
प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा यज्ञ में आने वाले श्रद्धालुओं को किया गया जागरूक!
///जगत दर्शन न्यूज
सारण (बिहार): प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा मशरख प्रखंड अंतर्गत देवरिया गांव में 21 से 29 अप्रैल 2025 तक आयोजित श्री रुद्रा महायज्ञ में यज्ञ का अध्यात्मिक रहस्य, हवन या आहुति का रहस्य, समय चक्र, राजयोग और नशा मुक्ति को लेकर यज्ञ में आने वाले श्रद्धालुओं को जागरूक किया गया। यज्ञ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि विज्ञान, अध्यात्म और मनोविज्ञान का अद्भुत संगम है। हवन और आहुति के माध्यम से न केवल आत्मा शुद्ध होती है, बल्कि वातावरण भी दिव्यता से भर जाता है। समय चक्र के साथ इसका सामंजस्य ब्रह्मांडीय ऊर्जा को नियंत्रित करने की क्षमता प्रदान करता है, जबकि राजयोग की साधना में यह एक मजबूत सहायक बनता है। यज्ञ का अभ्यास व्यक्ति को भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है। यज्ञ के अंतिम दिन समापन समारोह के दौरान महामंडलेश्वर गजेंद्र दास और फलहारी बाबा के द्वारा संयुक्त रूप से इन दोनों बहनों को शॉल से सम्मानित किया गया। संचालिका आराधना बहन के द्वारा नौ दिवसीय यज्ञ में माताओं और बहनों सहित भाइयों को बारीकी से समझने और समझाने का अवसर दिया गया है।
बीके आराधना बहन ने बताया कि यज्ञ भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत पवित्र और वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसका गहरा आध्यात्मिक रहस्य है। यह केवल अग्नि में सामग्री अर्पण करने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि आत्मशुद्धि, ऊर्जा संतुलन और ब्रह्मांडीय चक्रों को सुसंगत करने का माध्यम भी है। वहीं यज्ञ या महायज्ञ सहित किसी भी शुभ कार्य के दौरान हवन में दी जाने वाली आहुति प्रतीकात्मक रूप से हमारी इन्द्रियों, विकारों और इच्छाओं की बलि होती है। जिसमें घी, जड़ी- बूटियां, लकड़ी आदि अग्नि को समर्पित की जाती हैं, लेकिन अध्यात्म में यह समर्पण अहंकार, क्रोध, लोभ, मोह और भ्रम का होता है। जब कोई श्रद्धा और नियमपूर्वक आहुति देता है, तो उसका मानसिक कंपन (vibration) ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ जाता है, जिससे वह दिव्यता की ओर अग्रसर होता है। वेदों में उल्लेख है कि "अग्निर्देवानामवसः"। यानी आहुति के माध्यम से सूक्ष्मतम ऊर्जा तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो वातावरण को शुद्ध करने के साथ- साथ साधक के चित्त को शांत भी करती हैं। यह सूक्ष्म ऊर्जा मन और प्राण को संतुलित करती है, जिससे ध्यान और राजयोग की स्थिति प्राप्त होती है। जिस कारण अग्नि को देवताओं का मुख कहा गया है।