सिवान में बनेगा क्षेत्रीय यक्ष्मा केंद्र, 30 बेड वाले यक्ष्मा विभाग में मिलेंगी सभी सुविधाएं!
टीबी उन्मूलन में एक छत के नीचे सभी तरह की मूलभूत सुविधाओं का मिलना मील का पत्थर होगा साबित: डॉ अशोक कुमार
सिवान (बिहार): विगत 04 अप्रैल को स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय के द्वारा सदर अस्पताल परिसर स्थित 39 बेड वाले पीकू वार्ड के उद्घाटन कार्यक्रम के दौरान यक्ष्मा विभाग की समीक्षा के दौरान यक्ष्मा के मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुबिधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से क्षेत्रीय यक्ष्मा केन्द्र का निर्माण सिवान जिले में किए जाने का निर्देश दिया था। इस संबंध में सिविल सर्जन डॉ श्रीनिवास प्रसाद ने बताया कि सूबे के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय का मानना है कि कि राज्य में स्वास्थ्य विभाग के द्वारा बेहतर चिकित्सा सेवा एवं आधारभूत संरचना को स्थापित करने के लिए कृत संकल्पित है। जिसको लेकर जल्द ही सिवान में क्षेत्रीय यक्ष्मा केंद्र को भवन मिलने वाला है। जिसके लिए सभी प्रकार की आवश्यक कार्यों को पूरा किया जा रहा है। क्योंकि टीबी मुक्त अभियान के अंतर्गत पहचान, निदान और उसका उचित प्रबंधन का होना आवश्यक होता है। क्योंकि यक्ष्मा बीमारी एक प्रकार से संक्रामक रोग है, लेकिन सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में उपचार से संबंधित प्रबंधन का होना बेहद जरूरी होता है। जहां पर विशेष रूप से हर तरह की सुविधाओं से परिपूर्ण होना लाजिमी होता है। यदि किसी अस्पताल में 30 बेड वाला यक्ष्मा विभाग स्थापित किया जा रहा है, तो उसमें कुछ मूलभूत और विशेष सुविधाएं होना अनिवार्य है, ताकि मरीजों को बेहतर देखभाल मिल सके और संक्रमण पर प्रभावी नियंत्रण हो सके। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग के अपर निदेशक सह यक्ष्मा विभाग के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ बाल कृष्ण मिश्र के द्वारा परियोजना के मुख्य महाप्रबंधक, बिहार चिकित्सा सेवाएं एवं आधारभूत संरचना निगम लिमिटेड को विभागीय मंत्री के द्वारा आवश्यक दिशा-निर्देश दिया गया है।
जिला संचारी रोग पदाधिकारी डॉ अशोक कुमार का कहना है कि संपूर्ण सुविधाएं एक 30 बेड वाले यक्ष्मा विभाग को प्रभावी बनाती हैं, क्योंकि टीबी मुक्त अभियान को एक छत के नीचे सभी तरह की मूलभूत सुविधाएं इस कड़ी को मजबूत करती हैं।
हालांकि यक्ष्मा विभाग में अलग- अलग वार्ड होने चाहिए, जैसे - सामान्य टीबी मरीजों के लिए, मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट (MDR-TB) मरीजों के लिए और गंभीर स्थिति वाले रोगियों के लिए हाई डिपेंडेंसी यूनिट (HDU)। हर बेड के पास ऑक्सीजन सप्लाई की सुविधा, बायोमेडिकल वेस्ट डिस्पोजल सिस्टम और पर्याप्त रूप वेंटिलेशन होना चाहिए। इसके अलावा डिजिटल एक्स-रे मशीन, सीबी-नैट (CB-NAAT) और ट्रूनैट जैसी अत्याधुनिक जांच सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए, ताकि मरीजों की जल्द और सटीक पहचान कराने के किसी प्रकार से कोई दिक्कत या परेशानियों का सामना करना नहीं पढ़ें। वहीं प्रयोगशाला में बलगम जांच, खून की जांच और अन्य आवश्यक परीक्षण की सुविधा भी होनी चाहिए। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि टीबी मरीजों के लिए पोषण भी उपचार का अहम हिस्सा होता है, इसलिए पोषणयुक्त आहार की व्यवस्था, डाइटिशियन की सलाह और काउंसलिंग की सुविधा अनिवार्य रूप से होना चाहिए। मरीजों और उनके परिजनों को यक्ष्मा से संबंघित रोग के बारे में जानकारी देने के लिए स्वास्थ्य शिक्षा और उचित परामर्श काउंटर होना चाहिए। इसके अलावा विभाग में प्रशिक्षित चिकित्सक, नर्स, फार्मासिस्ट और लैब टेक्नीशियन की पर्याप्त संख्या होनी चाहिए। साथ ही मरीजों की गोपनीयता बनाए रखने और उन्हें सामाजिक भेदभाव से बचाने के लिए संवेदनशील वातावरण का निर्माण आवश्यक है।