नालंदा: प्राचीन भारत की विरासत।
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नालंदा (बिहार) संवाददाता राजीव कुमार झा: नालंदा हमारे देश का महान शिक्षा केन्द्र था। यह एक बौद्ध महावीर था और इसकी स्थापना गुप्त काल में कुमारगुप्त के द्वारा की गई थी। नालंदा विश्वविद्यालय कई शताब्दियों तक अस्तित्व में रहा और ऐसा कहा जाता है कि यहां चीन से भारत आने वाले यात्री ह्वेनसांग ने भी शिक्षा प्राप्त की थी। नालंदा के बारे में ह्वेनसांग के लिखित विवरणों से रोचक जानकारी मिलती है। ह्वेनसांग के अनुसार यहां उस समय हजारों छात्र शिक्षा प्राप्त करते थे और इन छात्रों में तिब्बत इंडोनेशिया कोरिया इन सब देशों से शिक्षा प्राप्ति के लिए यहां आने वाले छात्रों का जिक्र उसने किया है। गुप्त साम्राज्य के विघटन के बाद पुष्यभूति राजवंश के शासक हर्षवर्धन और बंगाल के पालवंश के राजाओं ने नालंदा के इस महाविहार की देखरेख में महत्वपूर्ण योगदान दिया। बारहवीं शताब्दी में नृशंस मुस्लिम आक्रमण से नालंदा का महाविहार नष्ट हो गया और कालक्रमेण इसका विशाल परिसर मिट्टी के टीलों में बदल गया। भारत में ब्रिटिश सरकार की स्थापना के बाद देश के प्राचीन स्थलों की खोज का काम अलेक्जेंडर कनिंघम के नेतृत्व में जब शुरू हुआ तो उसी क्रम में नालंदा में भी खुदाई के काम की शुरुआत हुई। नालंदा में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का एक संग्रहालय भी है। नालंदा को यूनेस्को ने भी अपने वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल किया है। नालंदा पटना और गया बिहार के इन दोनों ही शहरों से रेल - सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। यहां देश विदेश के पर्यटक इस प्राचीन स्थल का भ्रमण करने के लिए आते रहते हैं।