कालाजार: संभावित मरीजों की खोज को लेकर लगा कैंप!
जिला स्तरीय पदाधिकारियों द्वारा ग्रामीणों को कालाजार से बचाव एवं आईआरएस के महत्व के संबंध में दी गई में जानकारी: एमओआईसी
कालाजार मरीजों की खोज और जागरूकता को लेकर टीम का हुआ गठन: डॉ ओपी लाल
सिवान (बिहार): कालाजार नियंत्रण को लेकर सिंथेटिक पैराथायराइड (एसपी) का फोकल स्प्रे तथा कालाजार के संभावित मरीजों की खोज कैंप का आयोजन जिले के भगवानपुर हाट प्रखंड अंतर्गत माघर गांव में किया गया। उक्त संबंध में प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ विजय कुमार ने संदिग्ध मरीजो और अभिभावकों से मिलने के बाद कहा कि संभावित कालाजार ग्रसित गांवों में सिंथेटिक पैराथायराइड (एसपी) का छिड़काव अभियान के तहत विगत तीन वर्षों में कालाजार के संभावित मरीज पाए गए या मरीजों की पहचान होने वाले गांव में विशेष रूप से स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा चलाया जाता हैं। हालांकि किसी के हाथ, पैर और पेट की त्वचा काली होने की शिकायतें मिलती हैं, जिसे पोस्ट कालाजार डरमल लिश्मैनियासिस (पीकेडीएल) कालाजार से ग्रसित मरीज कहा जाता है। क्योंकि मुख्य रूप से पोस्ट कालाजार डरमल लिश्मैनियासिस (पीकेडीएल) एक त्वचा रोग है जो कालाजार के बाद होता है। जिसको लेकर छिड़काव अभियान के दौरान क्षेत्रों में ऐसे मरीजों की भी खोज की जाती है, साथ ही उन लोगों को तत्काल इलाज के लिए नजदीकी अस्पताल भेजा जाता हैं। हालांकि जिले में कालाजार मरीजों की संख्या धीरे - धीरे कम होते जा रहा है, इसका मतलब यही हुआ कि कालाजार मुक्त अभियान सफ़लता की ओर अग्रसर है।
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ ओम प्रकाश लाल ने बताया कि पूर्व के दिनों में जिले के विभिन्न प्रखंड क्षेत्रों में मरीजों की संख्या ज्यादा होती थी लेकिन अब मरीजों की संख्या काफी घट गई है। क्योंकि इस वर्ष विसरल लीशमैनियासिस (वीएल) के 34 जबकि पोस्ट कालाजार डरमल लिश्मैनियासिस (पीकेडीएल) के 12 मरीजों की पहचान हुई है। जिस कारण इससे स्पष्ट होता है कि पिछले साल की तुलना में इस बार मात्र कुल 46 मामले चिह्नित हुए है। जिसमें भगवानपुर हाट प्रखंड में 10 कालाजार मरीजों का उपचार किया जा रहा है। जिसका श्रेय जिले के सभी प्रखंडों के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी और उनकी टीम को जाता है। साथ ही सहयोगी संस्थानों का भी भरपूर सहयोग मिला है। क्योंकि जिस प्रकार से जिले में कार्य किया जा रहा है, उसके आधार पर हम यह आश्वस्त करते हैं कि ज़िले में अब कोई मरीज नहीं मिल सकता है लेकिन इसके बावजूद हम लोगों को पूरी तन्मयता के साथ कार्य करने की जरूरत है।
पीरामल स्वास्थ्य के जिला प्रतिनिधि कुंदन कुमार ने भगवानपुर हाट प्रखंड के माघर गांव में भ्रमण के दौरान उपस्थित ग्रामीणों को जागरूक करते हुए कहा कि कालाजार बीमारी बालूमक्खी के काटने से होने वाला रोग है। क्योंकि अत्यधिक नमी एवं अंधेरे वाले स्थान पर कालाजार की मक्खियां ज्यादा फैलती है, लेकिन इससे ग्रसित मरीजों का इलाज आसानी से संभव है। हालांकि यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भी प्रवेश कर जाता है। अमूमन दो सप्ताह से अधिक बुखार, पेट के आकार में वृद्धि, भूख नहीं लगना, उल्टी होना, शारीरिक चमड़ा का रंग काला होना सहित कई अन्य कालाजार बीमारी के मुख्य लक्षण हैं। ऐसे लक्षण वाले मरीजों को विसरल लीशमैनियासिस (वीएल) कालाजार की श्रेणी में रखा जाता है। ऐसा लक्षण शरीर में महसूस होने पर ग्रसित मरीज को अविलंब जांच कराना जरूरी होता है। इसका इलाज कराने के बाद भी ग्रसित मरीज को सुरक्षित रहना अतिआवश्यकता होता है। इस अवसर पर एमओआईसी डॉ विजय कुमार, डीवीबीडीसी नीरज कुमार सिंह, वीडीसीओ विकास कुमार, पीरामल स्वास्थ्य के जिला प्रतिनिधि कुंदन कुमार, सिफार के डीपीसी धर्मेंद्र रस्तोगी, वीबीडीएस जावेद मियादाद, पीरामल स्वास्थ्य के प्रखंड समन्वयक सोनू कुमार, आशा कार्यकर्ता सहित कई अन्य स्वास्थ्य कर्मी मौजूद थे।