अपने मूल उद्देश्यों से भटकाव की डगर पर शिक्षक दिवस!
✍️ सत्येन्द्र कुमार शर्मा (वरीय पत्रकार)
अपने मूल उद्देश्यों से भटकाव की डगर पर चल कर अब शिक्षक दिवस बधाईयों का तांता तक सीमित हो गया है। यह अपने मूल संकल्प से अलगाव की ओर अग्रसर है। शिक्षक दिवस पर राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन का स्मरण करने उनके विद्वत्ता का बखान करने उसे अपने जीवन में उतारने के बजाय हम एक दूसरे को बधाई और शुभकामनाएं तक ही सिमट कर रह गए हैं।
खासकर शोसल मीडिया प्लेटफॉर्म उसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण अग्रणी भूमिका निभा रहा है।जो भी हो राष्ट्रीय स्तर से ग्राम व ग्राम पंचायत स्तर तक राजनीतिकरण का होना और उसमें भयानक गिरावट आई है। और यह गिरावट आने वाले दिनों में हमारे लिए ही घातक होता जा रहा है।
विधायिका ने मार्यादा का हनन किया तो कार्यपालिका, पत्रकारिता, न्यायपालिका के शीर्ष पर आसीन द्वारा भी सारी हदें पार कर दिया गया है।
हमें उन मूल्यों को स्थापित करने के लिए एक बार सतत प्रयास करने का समय भी आ गया है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर व शिक्षा दिवस पर हमें उनके मूल्यों की ओर झांकने की जरूरत है। तभी लोकतंत्र अपने शताब्दी के अंतिम दिनों में एक नया इतिहास रचा जा सकता हैं।
हमारे देश में शिक्षक से उपर गुरु सांस्कृतिक विरासत के रूप में रहा है जिसकी चर्चा स्वयं डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा अपने द्वारा विश्व के समय रखें है।
05 सितंबर शिक्षक दिवस के मौके पर सदैव सामाजिक, सांस्कृतिक, गुणों को शैक्षणिक रूप से मानव को भरपूर सींचती करने वाले तमाम शिक्षकों को हार्दिक अभिनन्दन शुभकामनाएं अर्पण कर रहा हूॅं। लेकिन स्मरण रहे हमारे सांस्कृतिक विरासत में त्रेता युग में गुरु बशिष्ठ के चरणों में सबों के पुजीत राम अपना सिर नवाते हैं। उसी प्रकार द्वापर में कर्ण के गुरु प्रशुराम, अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य भी पुजनीय रहें हैं। आज गुरूवार का दिन भी श्रृष्टि के शुभारंभ से ही गुरु को ही समर्पित रहा है।