पत्रकारिता अब रचनात्मक के बजाय बाजारु व कॉपी पेस्ट हो गया है!
///जगत दर्शन न्यूज
पत्रकारिता आज कॉपी पेस्ट बनता जा रहा है। तथ्यों एवं साक्ष्यों के बावजूद सृजनात्मक लेखन से कोसों दूर होता जा रहा है। हमें अब इसमें बदलाव लाने की जरूरत बढ़ती जा रही है।
साप्ताहिक अखबारों की चर्चा में रचनात्मकता सिर्फ राजनीति में नहीं अपितु प्रत्येक क्षेत्र मेंं होना आवश्यक है। समाचार पत्रों के संपादकीय अब सिर्फ राजनीतिक बनकर रह गए हैं। बदलाव की जरूरत अहम होती जा रही है उसमें रचनात्मकता लाने की कोशिश करने की भी जरूरत है। पत्रकारिता के छात्रों को साहित्य, अर्थशास्त्र, फिल्म, भूगोल, खेल समेत सभी क्षेत्रों की व्यापक जानकारी होनी चाहिए तथा भाषा और साहित्य की दृष्टि से समृद्ध होने की भी जरूरत है।
नकारात्मक प्रवृत्ति के समाचारों को सकारात्मक प्रवृत्ति के समाचार को पीछे धकेल दिए जा रहे हैं और जनजीवन का कृष्ण पक्ष शुक्ल पक्ष पर हावी होता जा रहा हैं जो मंथन करने की जरूरत है। रामायण की कथा नकारात्मकता पर सकारात्मकता की विजय का प्रतीक है। रचनात्मक पत्रकारिता से मानव के जीवन का सकारात्मक पहलू उजागर होता है। रचनात्मक पत्रकारिता के अर्थ सामाजिक जीवन में सकारात्मकता पैदा करना और युवा शक्ति में प्रेरणा जागृत करना तथा राष्ट्र निर्माण के लिए कार्य करना ही रचनात्मक पत्रकारिता है। राष्ट्र की संप्रभुता एकता और अखंडता बनाए रखने के लिए भी पत्रकारिता एक अहम योगदान देता रहा हैं। इसलिए खबरों में सकारात्मकता होना बेहद जरूरी है। पत्रकारिता के उज्जवल भविष्य की संरचना का दायित्व आज के मीडिया विद्यार्थियों के ऊपर हैं। भारत में पत्रकारिता का एक गौरवशाली इतिहास रहा है और मीडिया समाज में ओपिनियन लीडर की भूमिका निभाता चला आ रहा है। महात्मा गांधी ने 'हरिजन' में लिखा था कि पश्चिम की तरह पूर्व में भी अखबार लोगों के लिए बाइबल और गीता बनती जा रही है और लोग छपी हुई बातों को ईश्वर के रूप में सत्य मान लेते हैं। मीडिया की समाज और देश के प्रति एक अहम जिम्मेदारी है।मीडिया की विश्वसनीयता समाज की छोटी से छोटी जानकारी जनता तक पहुंचा कर परमार्थ करना ही पत्रकारिता का मूल धर्म हैं। समाचार तथ्यों के आधार पर तो होना चाहिए लेकिन उसे प्रभावी और रुचिकर बनाने के लिए रचनात्मकता की जरूरत भी होती है। पत्रकारिता का बाजारीकरण तो आज समय की मांग हो गई है। लेकिन पत्रकार का बाजारू होना बिल्कुल गलत बात है।
नारद ऋषि आदि भी पत्रकार हैं। कुछ देश विरोधी तत्व नारद ऋषि तथा सनातनी संस्कृति का अपमान कर रहे हैं। ऐसे कृतियों के साथ खिलवाड़ कर रहे है। हमारे गौरवशाली इतिहास को तोड़ मरोड़ कर प्रेषित करने के कारण युवाओं को वह जानकारी नहीं मिल पा रही या फिर विकृत रूप में पहुंच रही है जिससे उनका फायदा होने की जगह नुकसान ज्यादा हो जा रहा है। आज की पत्रकारिता आरोप और प्रत्यारोप की पत्रकारिता बन कर रह गई है।जबकि पत्रकारिता का धर्म राष्ट्र निर्माण का रहा है।
पत्रकारिता देश के विभिन्न घटकों के बीच संवाद स्थापित करती है इसलिए इसका रचनात्मक होना अनिवार्य है। लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए विभिन्न घटकों के सहयोग की आवश्यकता होती है और पत्रकारिता का भी इसमें अहम योगदान होता है। राष्ट्रीय विचारधारा वाले पत्रकारों पर विभिन्न देश विरोधी संगठनों तथा तत्वों द्वारा दबाव बनाए जा रहे हैं। चाहे वह मीडिया ट्रायल के नाम पर हो या फिर पक्षकार या पत्रकार के नाम पर जो सर्वथा गलत हो रहा है। हमें उस गलत को विशेष रूप से ध्यान में रखकर आमजन के बीच रखना चाहिए।