यक्ष्मा उन्मूलन अभियान कार्यक्रम -
जिले के सभी यक्ष्मा कर्मियों को किया गया प्रशिक्षित:
टीबी बीमारी को आसानी से कम करने में टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी (टीपीटी) की महत्वपूर्ण भूमिका: सिविल सर्जन
जिले के सभी प्रखंडों से अनिवार्य रूप से पांच - पांच पंचायतों का चयन होना चाहिए: सीडीओ
सारण (बिहार) संवाददाता सत्येंद्र कुमार शर्मा: यक्ष्मा मरीजों के संपर्क में रहने वाले परिवार के सभी सदस्यों को टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी (टीपीटी) देकर टीबी बीमारी को 90 प्रतिशत तक आसानी से कम किया जा सकता है। क्योंकि जब तक टीपीटी नही दिया जाएगा तब तक बीमारी अपना रूप बदलते रहेगा। उक्त बातें सिविल सर्जन डॉ सागर दुलाल सिन्हा ने सदर अस्पताल परिसर स्थित जीएनएम कॉलेज के सभागार में जिले के सभी एसटीएलएस और एसटीएस को टीबी मुक्त अभियान को लेकर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान कही। उन्होंने यह भी कहा कि जिले के सभी स्वास्थ्य स्वस्थ्य केंद्रों एवं निजी चिकित्सकों के पास जांच के बाद टीबी मरीज़ों की पहचान होती है। इसका उपचार और फेफड़े वाली टीबी (पल्मोनरी) से चिन्हित टीबी मरीजों के संपर्क में आए परिजनों की जांच और टीवी संक्रमण से बचाव के लिए राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के नए गाइडलाइन के अनुसार प्रशिक्षित किया जा रहा है। क्योंकि सामूहिक स्तर पर हम सभी की सहभागिता से टीबी जैसी बीमारी को जड़ से मिटाने के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। टीबी उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने में सीएचसी और पीएचसी स्तर पर यक्ष्मा विभाग से जुड़े कर्मियों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है।
जिला यक्ष्मा पदाधिकारी (सीडीओ) डॉ रत्नेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि टीबी मुक्त पंचायत को लेकर जिले के सभी वरीय यक्ष्मा प्रयोगशाला पर्यवेक्षक (एसटीएलएस) और वरीय यक्ष्मा पर्यवेक्षक (एसटीएस) को डब्ल्यूएचओ, कर्नाटका हेल्थ प्रमोशन ट्रस्ट (केएचपीटी), रीच इंडिया और ट्राई इंडिया के सहयोग से सभी को प्रशिक्षण दिया गया। ताकि जिले के सभी प्रखंडों से पांच पांच पंचायतों का चयन कर टीबी मुक्त की दिशा में कार्य किया जाए। मालूम हो कि राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम के तहत वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त की घोषणा देश के प्रधानमंत्री द्वारा किया गया हुआ। जिसके आलोक में हम सभी को पंचायत स्तर पर टीबी मुक्त अभियान शुरू किया गया है। भारत सरकार ने वर्ष 2025 तक टीबी को जड़ से मिटाने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने कहा कि प्रोग्रामेटिक मैनेजमेंट ऑफ टीबी प्रीवेंटिव ट्रीटमेन्ट (पीएमटीपीटी) आयोजन के तहत लेटेंट टीबी इंफेक्शन वाले मरीज को चिह्नित कर उन्हें टीपीटी से जोड़ा जाएगा, ताकि उनके शरीर के अंदर पनप रहे टीबी की बैक्टीरिया को एक्टिव होने से पहले समाप्त कर दिया जाए। इससे टीबी संक्रमण प्रसार के चेन को तोड़ने में मदद मिल सकती है।
डब्ल्यूएचओ के क्षेत्रीय समन्यवक डॉ कुमार विजयेंद्र सौरभ ने कहा कि जिले के सभी स्वास्थ्य संस्थानों के ओपीडी का 10 प्रतिशत जांच संभावित यक्ष्मा से संबंधित व्यक्तियों का अनिवार्य रूप होना चाहिए। ताकि सभी अस्पतालों में कम से कम 12 से 15 यक्ष्मा जांच प्रतिदिन हो सकें। इसके लिए जिले के सभी अस्पतालो में ट्रूनेट मशीन पूरी तरह से कार्य करना प्रारंभ हो गया है। यक्ष्मा बीमारी में सही समय पर जांच और इलाज शुरू किया जाए तो आसानी से इस बीमारी को मात दिया जा सकता है।इसके लिए राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम के तहत जिले के सभी कर्मियों को विभागीय स्तर पर प्रशिक्षण दिया गया। साथ ही डिफ्रेसिएट टीबी केयर के तहत यक्ष्मा मरीजों में मृत्यु दर को करने के लिए विभिन्न 16 प्रकार के पैरामीटर पर जांच करने के लिए उपस्थित सभी कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया।
इस अवसर पर सिविल सर्जन डॉ सागर दुलाल सिन्हा, जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ आरपी सिंह, जिला एचआईवी एड्स के नोडल अधिकारी डॉ मकेश्वर प्रसाद चौधरी, डब्ल्यूएचओ के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ कुमार विजयेंद्र सौरभ, डीपीसी हिमांशु शेखर, सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च के डीपीसी धर्मेंद्र रस्तोगी, एसटीएस मुकेश कुमार, डीईओ अनंत कुमार, सहायक रत्न संजय और भंडारपाल संतोष कुमार गुप्ता सहित कई अन्य लोग उपस्थित थे।