श्रीकृष्ण से सीखें संघर्ष!
जन्माष्टमी का पर्व भी हमे बहुत कुछ सिखाती है। इस बार की जन्माष्टमी तो खास और दुर्लभ भी है, वह इसलिए कि ठीक उसी शुभ मुहूर्त, तिथि, वार, नक्षत्र में आ रही है जब हमारे कन्हैया लाल का जन्म हुआ था।
भगवान ने जन्म के बाद से ही क्या बताने की कोशिश की है यह हम समझ पाएँ तो हमारा जीवन आसान हो जाएगा। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन संघर्ष और धैर्य का प्रतीक है। उनके जीवन की हर घटना से हमें कठिनाइयों का सामना करने और संघर्ष को स्वीकारने की प्रेरणा मिलती है।
उनका पूरा जीवन संघर्षों से भरा था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। बल्कि, उन्होंने हर परिस्थिति में अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए सफलता प्राप्त की। श्रीकृष्ण का जन्म ऐसे समय में हुआ जब मथुरा के राजा कंस ने उनके माता-पिता को कारागार में बंद कर रखा था। जन्म लेते ही उन्हें अपने माता-पिता से अलग होना पड़ा। लेकिन उन्होंने इस कठिन परिस्थिति का सामना किया और गोकुल में नंद-यशोदा के संरक्षण में पलकर बड़े हुए।
उनकी बाललीलाओं में भी हमें संघर्ष का दर्शन होता है, कि कैसे सगा मामा कंस जान का दुश्मन बना हुआ था। पहले पूतना को मारने भेजा, फिर शकटासुर, बकासुर आदि राक्षसों के वध के बाद कालिया नाग, और अन्य राक्षसों से स्वयं तथा गोकुलवासियों की रक्षा की। भगवान श्रीकृष्ण को गोकुल छोड़ते समय अपनी प्रिय सखी श्रीराधा का साथ छोड़ना पड़ा क्योंकि उन्हें कंस वध के लिए मथुरा जाना था। अपने कर्तव्य के लिए अपनी सबसे प्रिय सखी का साथ छोड़ मथुरा के लोगों को कंस के अत्याचार से मुक्त कराने के लिए श्री कृष्ण ने संघर्ष किया और अंततः कंस का वध किया।
इस घटनाक्रम से हमें यह समझ आता है कि कर्तव्य पथ पर अपने प्रिय का साथ भी छोड़ना पड़े तथा अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करना पड़े, तो हमें संकोच नहीं करना चाहिए। फिर हुआ महाभारत का युद्ध जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सारथी के रूप में भूमिका निभाई। युद्ध के प्रारंभ में अर्जुन के मन में दुविधा उत्पन्न हुई थी, लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे गीता का उपदेश देकर धर्म और कर्तव्य का महत्व समझाया। गीता का संदेश आज भी जीवन के हर क्षेत्र में संघर्ष के समय प्रेरणा देता है। श्रीकृष्ण ने कर्मयोग का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो यह सिखाता है कि बिना फल की चिंता किए अपने कर्तव्यों का पालन करना ही सच्चा धर्म है।
कल भगवान श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी मनाते समय हम सभी उनके पूजन के साथ-साथ यह अंगीकार करें कि संघर्ष, जीवन का अभिन्न अंग है। कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ हमारे मार्ग में आएंगी, लेकिन हमें धैर्य और साहस के साथ उनका सामना करना है। संघर्ष के समय हमें सकारात्मक रहते हुए, कड़ा परिश्रम करना है। श्रीकृष्ण का जीवन हमें यह भी सिखाता है कि संघर्ष से ही सफलता प्राप्त होती है। उन्होंने अपने जीवन के हर क्षेत्र में संघर्ष किया और उसे सकारात्मकता और धैर्य से पार किया। यही कारण है कि श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आज भी हमें प्रेरित करती हैं।