भारत और नेपाल के लोगों के दिल और मन बसा शुकेश्वरनाथ महादेव मंदिर
✍️ धर्मेंद्र रस्तोगी
सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन से 25 किमी की दूरी पर मेजरगंज प्रखंड मुख्यालय से 10 किमी की दूरी पर बसबिट्टा गांव में है शुकेश्वरनाथ महादेव का प्राचीन मंदिर!
यह मंदिर न केवल भारत व नेपाल के लोगों के आस्था का केंद्र है, बल्कि यहां के भोले नाथ दोनों देशों के लोगों के मन - मंदिर में रच - बस गए है।
मेजरगंज: भारत - नेपाल सीमा पर मेजरगंज प्रखंड मुख्यालय से दस किमी की दूरी पर बसबिट्टा गांव में स्थित है शुकेश्वर नाथ महादेव का अति प्राचीन मंदिर। यह मंदिर न केवल भारत व नेपाल के लोगों के आस्था का केंद्र है, बल्कि यहां के भोले नाथ दोनों देशों के लोगों के मन - मंदिर में रच - बस गए है। इनकी महिमा अपरंपार है। कहते है कि यहां जो भी आया और भोले नाथ के आगे शीश नवाया, उसकी मनोकामना पुरी हुई है। शुकेश्वर नाथ महादेव के दर से अब तक कोई खाली नहीं गया है। वैसे तो यहां सालो भर लोग आते - जाते रहते है, लेकिन सावन माह में यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ रहती है। महादेव के पानी में डूबे रहने के कारण भले ही लोगों को महादेव के दर्शन नहीं होते है, लेकिन मंदिर के बाहर से ही लोग जलाभिषेक कर खुद को पुण्य के भागी बनते है।
क्या है इतिहास : सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन से 25 किमी की दूरी पर मेजरगंज प्रखंड मुख्यालय से 10 किमी की दूरी पर बसबिट्टा गांव में है शुकेश्वरनाथ महादेव का प्राचीन मंदिर।
शुकेश्वर मुनी द्वारा इस शिवलिंग की स्थापना किए जाने के कारण ही इस शिवलिंग का नाम शुकेश्वरनाथ पड़ा। जानकारों के अनुसार त्रेता युग में स्वयंबर में भाग लेने जनकपुर जाने के दौरान बसबिट्टा गांव में शुकेश्वर ऋषि ने यहां शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शंकर की पूजा अर्चना की थी। मिथिला नरेश राजा जनक ने भी बसविट्टा पहुंच कर बाबा शुकेश्वरनाथ महादेव की पूजा - अर्चना की थी। कहते है कि इस स्थान पर भोलेनाथ ने राजा जनक व शुकेश्वर ऋषि को दर्शन भी दिया था। राम जानकी विवाह के बाद जनकपुर से लौटते ऋषि - मुनियों ने यहां मंदिर का निर्माण करा कर भोले नाथ की पूजा - अर्चना के बाद वापस गए थे। बाद में यह मंदिर जमींदोज हो गया। भूकंप की त्रासदी झेलने के बाद जनकपुर राज दरबार द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। वर्तमान में मंदिर की देखभाल महंथ राजेश मिश्र द्वारा कराई जा रही है। यहां स्थापित शिवलिंग अति प्राचीन है जो धरती की सामान्य उंचाई से दस फीट नीचे करीब सात फीट लंबा शिवलिंग। सावन से कार्तिक तक शिवलिंग जलाधिवास में रहते है। इन चार महीनों में शिवलिंग का गर्भ गृह पानी में डूबा रहता है। लिहाजा सावन से कार्तिक तक लोग मंदिर के बाहर स्थित भगवान शिव की प्रतिमा पर ही जलाभिषेक करते है। मंदिर के गर्भ गृह का पानी इलाके में मौसम की भविष्यवाणी करता है। गर्भ गृह में जितना पानी होता है, इलाके में उतना ही अधिक पानी होता है। गर्भ गृह में पानी सूखने से इलाके में अकाल की स्थिति होती है। मंदिर के पास तालाब व कुंआ है। जिनके जल से बाबा का अभिषेक किया जाता है। वहीं मंदिर की ओर से धर्मशाला बनाया गया है। जहां दूर - दराज के श्रद्धालु ठहरते है। यहां नित्य भजन, कीर्तन व रामधुन होते रहे है। यहां बसंत पंचमी, महा शिवरात्रि व सावन माह में मेला लगता है।