मालामाल कर देगा ऑटोमेटिक बायोफ्लॉक तकनीक!
कटिहार (बिहार) संवाददाता रूपेश मिश्रा: अगर आप मछली पालन से जुड़कर माला-माल होना चाहते हैं तो यह खबर आपके लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि कटिहार के झंटू उरांव ने इसे सच करके दिखाया है।
बिहार का पहला ऑटोमेटिक बायोफ्लॉक
प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना के माध्यम से यह तस्वीर बदल रही है। दरअसल झंटू उरांव ने मत्स्य एवं पशुपालन विभाग की सहायता से कौवा बाड़ी में बिहार का पहला 50 टैंक वाला ऑटोमेटिक बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन की शुरुआत की है। कटिहार में बिहार का पहला ऑटोमेटिक बायोफ्लॉक उद्घाटन के मौके पर पहुंची बिहार सरकार की मतस्य एवं पशुपालन मंत्री रेणु देवी ने कहा कि बिहार कभी आंध्र प्रदेश के मछली के लिए आश्रित था, लेकिन अब मछली उत्पादन के मामले में बिहार ना सिर्फ आत्मनिर्भर बन रहा है बल्कि अन्य प्रदेशों तक बिहार की मछली भी सप्लाई कर रहा है।
सरकार द्वारा 40 से 60% तक अनुदान
उन्होंने कटिहार में झंटू उराव को बिहार का पहला 50 टैंक वाला ऑटोमेटिक बायोफ्लॉक शुरू करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि केंद्र और राज्य सरकार ऐसे युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए संकल्पित है। वही झंटू उरांव ने कहा कि बिहार का यह पहला ऑटोमेटिक बायोफ्लाक है, जहां पानी खुद फिल्टर होता है, जिससे टैंक में अमोनिया नहीं होने से मछलियां बीमार कम होती है और मछलियों का ग्रोथ अच्छा होता है। फिलहाल बायो फ्लॉक तकनीक से पंगेसियस, देसी मांगूर, देसी सिंघी, कवय, रूपचंद, सिलहन सहित अन्य प्रजापतियो के मछली पालन किया जा रहा है। वहीं युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार द्वारा 40 से 60% तक अनुदान भी दिया जा रहा है।
एक टैंक में लगभग चार कुण्टल मछली
बता दे इस एक टैंक में लगभग चार कुण्टल मछली का उत्पादन कर सकते हैं, बायो फ्लॉक एक वैक्टीरिया के इस्तेमाल से मछली पालन का तकनीक है। इस तकनीक में सबसे पहले मोटे पॉलिथीन से बने टैंक का प्रयोग किया जाता है। इसमें मछली पालन करने के साथ मछलियों को भोजन दिया जाता है। मछलियां जितना खाती है उसमें 75% मल के रूप में शरीर से बाहर निकाल देती है। फिर बायो फ्लॉक बैक्टीरिया इस मल को प्रोटीन में बदलने का काम करता है, जिसे मछलियां खा जाती है।