उपवास अन्न का ही नहीं...
नागपुर (महाराष्ट्र): हिंदी महिला समिति नागपुर द्वारा एक ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा का विषय था उपवास केवल अन्न का ही नहीं, क्रोध और कुविचारों का भी होना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन रेखा पांडेय का रहा और विशेष अतिथि श्रीमती रति चौबे थी।
गीतू के अनुसार पाचन तंत्र सुधारने और पेट को आराम देने के लिए उपवास ठीक है। व्रत उपवास का मतलब अन्न का त्याग हमारी इच्छा शक्ति पर है ना की आस्था, भक्ति का परिचायक। निर्मल मन और निश्चल भक्ति से भगवान प्रसन्न होते हैं।
गार्गी जी के अनुसार क्या उपवास की अवधि में हमारे विचार सात्विक रह पाते हैं? हम अपने चारों तरफ नकारात्मक उर्जा का घेरा बना लेते हैं, जो हमारे व्यक्तित्व और मानवीय विकास के लिए घातक हैं। ईश्वर किसी पूजा पाठ में नहीं अपितु हमारे सात्विक विचारों में रहते हैं।
रीना मुखर्जी का कहना है कि अवश्य ही व्रत, उपवास हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को नियंत्रित करते हैं, लेकिन जब इसे किसी भगवान के नाम से किया जाता है। उस समय भगवान के पूजा के लिए फूल, पूजा की तैयारी, प्रसाद यह सब करने में समय बीत जाता है और उस समय क्रोध और कुविचारों से दूर रहते हैं।
भगवती जी कहती हैं कि व्रत, उपवास याने संयम, त्याग। भोजन का त्याग करने को ही उपवास कहते हैं। उपवास रखने से धीरे-धीरे मस्तिष्क से कुविचार खत्म होते ही मन अध्यात्मिक होना ही उपवास की विशेषता है। उपवास के दिन ईश्वर की आराधना और कीर्तन होने से भी मन और ह्रदय निर्मल होता है।
अमिता जी कहती हैं कि, परंपरा के अनुसार ही व्रत, उपवास किया जाता है। उपवास भगवान को खुश रखने साथ ही अच्छी सेहत के लिए भी करते हैं, जिससे मन स्वस्थ होने पर विचार भी सकारात्मक होते हैं। जीवन का मकसद ढूंढने में सफल हो जाते हैं।
कविता कौशिक जी का मानना है कि अन्न त्यागकरने के साथ ही मन को संयमित करने के लिए क्रोध और बुरे विचारों का त्याग भी जरूरी है, जिससे हमारी जीवन शैली सुधरने पर हम खुशहाल जीवन जी सकेंगे।
ममता विश्वकर्मा कह रही हैं कि उपवास में भोजन छोड़ कर, निर्जल या फलाहार रहने से नहीं होता बल्कि अपने मन के नकारात्मक विचारों, क्रोध ईर्ष्या से भी दूरी बनाना है। भोजन का उपवास शरीर को स्वस्थ और क्रोध और कुत्सित विचारों, भावनाओं का उपवास मानसिक और आत्मशुध्दि के लिए अनिवार्य है।
सुषमा जी कहती हैं कि उपवास अपनी सहनशीलता के अनुसार रखना चाहिए। उपवास वह है, जो शुद्ध विचारों को, मधुर वाणी को, सहनशीलता को बढाता है। इन्हीं विचारों के साथ कोई भी व्रत, उपवास, ध्यान, भजन आदि रखना चाहिए। इस तरह सभी बहनों ने अपने अपने विचार रखे। उपवास या व्रत हम किसी विशेष तिथि-त्योहार पर करते हैं।
रश्मि मिश्रा ने कहा कि वैसे तो हमने कभी यह नहीं सुना कि भगवान स्वयं कहे हों कि तुम यह व्रत-उपवास करो या यह मत करो। यह तो एक अनुबंध है जिसमें हम अपने आप को भगवान के प्रेम से बाँध सकें। ठीक इसी प्रकार अगर हम अपने आचार, विचार को संयम से करें अर्थात उपवास करें तो हम एक दुसरे के प्रेम अनुबंध में बँध सकते हैं
अंत में संस्था की अध्यक्षा रति चौबे ने सभी के व्रत(उपवास) के अलग अलग सारगर्भित विचारों की प्रशंसा करते हुए कहा कि " व्रत सही में एक मनष्य का दृढ़ संकल्प होना ही होता है,एक उदेश्य होता है, जिसे वह पूर्ण करता है जब तक व्यक्ति के सामने कोई संकल्प, उद्धेश्य, ना होगा व जीवन में कटी पतंग के समान इधर उधर उढ़ता रहेगा। उसे एक आत्मिक शक्ति उपवास व लिये गये व्रत से मिलती है। अंत में आभार कोषाध्यक्ष ममता विश्वकर्मा ने माना।