होली 26 मार्च को! कर ले ये तैयारियाँ!
/// जगत दर्शन न्यूज
देश में होली का त्योहार हर साल बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। फाल्गुन मास में होली का पर्व मनाया जाता है. पहले दिन होलिका दहन (Holika Dahan) होता है तो दूसरे दिन रंगों वाली होली खेली जाती हैं. रंग वाली होली को दुलहंडी के नाम से भी जाना जाता है। इन दोनों ही दिनों का अपना महत्व होता है। इस साल लोगों में होली की सही तारीख को लेकर असमंजस की स्थिति देखने को मिल रही है। आइए जानते हैं इस साल 24 या 25 मार्च आखिर किस दिन होली मनाई जाएगी। इस संबंध में डॉक्टर विवेकानंद तिवारी और आचार्य धनंजय दुबे ने असमंजस को दूर करते हुए बताया है जो इस प्रकार से है।
इस वर्ष होलिका दहन 24 मार्च 2024 रविवार को और महापर्व होली 26 मार्च 2024 दिन मंगलवार को मनाया जाएगा। 24 मार्च दिन रविवार को सुबह 9 बजकर 24तक चतुर्दशी तिथि है। उसके बाद पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ हो जा रही है तथा उसके साथ ही भद्रा भी सुबह 9 बजकर 23 से शुरू हो जा रहा है, जो 24 मार्च को रात्रि 10 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। उसके बाद यानि 24 मार्च को रात्रि 10 बजकर 28 मिनट के बाद भद्रा रहित काल में और पूर्णिमा तिथि में होलिका दहन किया जायेगा। होलिका दहन का मुहूर्त हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार ---"फाल्गुनी पूर्णिमा तिथि, प्रदोष काल के साथ भद्रा रहित काल" को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यहीं होलिका दहन का अपना नियम और संविधान है। होलिका दहन के पूर्व "ढूंढा राक्षसी "का पूजन कर "ॐ होलिकायै नमः "इस मंत्र से विधि विधान और अपनी लोक परम्परा का निर्वहन करते हुए पूजन करके होलिका दहन करना चाहिए।
25 मार्च 2024 दिन सोमवार को पूर्णिमा तिथि दिन में 11 बजकर 31 मिनट तक रहेगी, जिसके कारण काशी में होली 25 मार्च को ही मनाई जाएगी। काशी में बाबा विश्वनाथ ज़ब होली खेल लेते हैं। उसके एक रोज बाद ही अन्य सभी जगहों पर होली मनाने की परम्परा है और हमारे यहाँ होली चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को मनाया जाता है। इसलिए काशी को छोड़ अन्य सभी राज्यों में होली का महान पर्व 26 मार्च दिन मंगलवार को धूम धाम से मनाया जाएग। यह पर्व रंगोत्सव, धुरैली फाग और बसंतोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन प्रातः काल में होलिका के भस्म को माथे में लगाते हैँ और आगामी नए संवत के कुशलता की कामनाकरते हैं और होली का पारम्परिक गीत गाते हुए होली मनाते हैं। सनातन धर्मियों का यह महापर्व अतुलनीय एवं अद्भुत है। परस्पर सदभाव का संदेश देता यह पर्व स्व के साथ अभिमान को दूर कर देता है तथा मानव के साथ पशुओं के साथ भी प्रेम का सदभाव व्यक्त करता है, स्मरण रखने की बात है कि आज के दिन लोग पशुओं को भी नहला धुला कर, अबीर ग़ुलाल का टीका लगाते हैं। ऐसा अलौकिक, अद्भुत स्नेह पूर्ण उदारता की परम्परा केवल भारतीय समाज में ही सम्भव है। वास्तव में यह पर्व मानसिक विकारों को दूर करने का पर्व है, इसे उल्लास के साथ मनाना चाहिए।