राजनीति:मंतव्य!
/// जगत दर्शन न्यू्ज
बिहार और उत्तर प्रदेश में गैर कांग्रेसी - भाजपा गठबंधन पार्टियों में राजनीतिक स्वार्थ और भ्रष्टाचार की समस्या!
✍️राजीव कुमार झा
राजद के साथ सरकार में अपने गठबंधन के टूटने से पहले नीतीश कुमार ने कर्पूरी ठाकुर को याद करते राजनीति में वंशवाद और भाई भतीजावाद की प्रवृतियों पर प्रहार किया था। आज बड़े नेता अपने परिवार में राजनीति को पेशा का रूप देने में जुटे हैं। यह सबको फायदेमंद धंधा प्रतीत होता है। आजादी के बाद कांग्रेस में शीघ्र आंतरिक लोकतंत्र का पतन हो गया और यह पार्टी इंदिरा गांधी के नेतृत्व में वंशवाद की प्रतीक बनकर उभरी। कांग्रेस शासन की प्रतिक्रिया में स्थापित गैर भाजपा पार्टियों ने भी आगे कांग्रेस के वंशवाद का अनुसरण किया और आज तेजस्वी यादव और चिराग पासवान जैसे नेता अपनी पार्टी की बैठकों में अपने ही दलों के बुजुर्ग नेताओं को नसीहत देते दिखाई देते हैं। नरेंद्र मोदी ने हाल में हेमंत सोरेन को भ्रष्टाचार मामले में ईडी के मार्फत पकड़वाया है। यह वही मुख्यमंत्री हैं जो जेल से जमानत मिलने से पहले लालू प्रसाद को बीमार कैदी का दर्जा देकर रिम्स के डायरेक्टर के सरकारी आवास में रखते थे और वहां मजिस्ट्रेट तैनात रहता था। शिबू सोरेन को भी पुलिस ने पकड़ा था। दलित पिछड़ा आदिवासी मुख्यमंत्री के नाम पर रुपये पैसे की अवैध कमाई में जुटना गंभीर समस्या है। केन्द्र सरकार इसे लेकर कानून बनाए और संभव हो तो मुख्यमंत्री का पद समाप्त कर दिया जाए । राज्यपाल के रूप में किसी समाज सेवी और सच्चे लोक सेवक को राज्यों के शासन काल प्रभारी बनाया जाय।
देश की राजनीति में पिछड़ों के उभार को लाने का श्रेय राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण को दिया जाता है। जयप्रकाश नारायण ऊंची जाति के थे और लोहिया पिछड़ी जाति से आते थे। देश में जातिवाद का दंश निरंतर गहराता जा रहा है और इसीलिए जीवनभर दलितों - पिछड़ों के उत्थान में समर्पित रहने वाले जयप्रकाश नारायण को भी आज पिछड़े वर्ग के लोग अपना नेता नहीं मानते हैं और आज की दलित पिछड़े तबकों की राजनीति लोहिया खुद को लोहिया की विचारधारा से अनुप्राणित मानती है। जयप्रकाश नारायण मूलतः महात्मा गांधी के अनुयायी थे और उन्होंने राजनीति में सदैव सबको देश समाज - हित में स्वतंत्रता पूर्वक सोचने का संदेश दिया। आज हमारे देश में उत्तर प्रदेश और बिहार इन राज्यों में 90 के दशक के बाद यहां की राजनीति में आए दलित पिछड़े उभार के मूल में लोहिया की भूमिका से ज्यादा बड़ा योगदान जयप्रकाश नारायण का मानना समीचीन होगा। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को अगर छोड़ दिया जाए तो जयप्रकाश नारायण को सारे गैर कांग्रेसी नेताओं ने धीरे -धीरे भुला दिया और आज जयप्रकाश नारायण के संदेशों से दूर जाती देश की गैर कांग्रेसी राजनीति सामाजिक सांस्कृतिक भटकाव और वैचारिक विषमताओं से गुजरती दिखाई देती है। इसमें कांग्रेस की राजनीति के परंपरागत तत्व अधिनायकवाद,वंशवाद, पुरोहितवाद और संकीर्ण स्वार्थ की घटिया प्रवृत्तियों का घृणित समावेश और सामाजिक परिवर्तन के नाम पर जनता को बेवकूफ बनाकर शासन सत्ता पर कब्जा जमाने के बाद यहां सरकारी पैसों की हेराफेरी से जुड़ी हालिया घटनाएं प्रबुद्ध लोगों के मन में चिंता कायम करती हैं। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह और मायावती के शासन काल के अलावा बिहार में लालू प्रसाद के कार्यकाल में यहां की राजनीति में दलित पिछड़े उभार के रूप में सामने आने वाली यहां की इन राजनीतिक प्रवृत्तियों से सारे लोग वाकिफ हैं। देश में सत्ता की राजनीति से कांग्रेस को बेदखल करना यहां सदैव विपक्षी पार्टियों की सबसे बड़ी चिंता रही और इसीलिए वैचारिक मतभेद के बावजूद इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के खिलाफ जनसंघ और इसके बाद भाजपा ने लोहिया जयप्रकाश नारायण की विचारधारा पर उभरी तीसरी धारा की राजनीतिक पार्टियों में गठबंधन की प्रवृत्ति भी देश में कायम हुई। अयोध्या में मुलायम सिंह ने राममंदिर निर्माण के आंदोलन में संलग्न साधुओं पर गोलियां चलवाईं और वीपी सिंह की सरकार का इसके बाद केन्द्र में पतन हो गया। बिहार में राजद के कुशासन से आजिज आकर जनता ने भाजपा और जनता दल ( यूनाइटेड) की सरकार को चुना। यह सरकार आज फिर यहां सत्ता में वापस लौट आई है। बिहार में भ्रष्टाचार राजनीति संस्कृति बन गयी थी और इस मिथक को नीतीश कुमार ने ध्वस्त कर दिया और इस प्रश्न के आसपास वह अपनी गठबंधन सरकार में निरंतर फेरबदल करते रहे हैं। बिहार जैसे गरीब और पिछड़े राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता को अगर नीतीश कुमार की सरकार अगर नये सिरे से लामबंद करती है तो यह लोहिया ही नहीं जयप्रकाश नारायण के प्रति भी सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी।