दोस्ती दिवस: क्या हम दोस्त कहलाने के काबिल है?
मनोज कुमार सिंह
राष्ट्रीय प्रवक्ता
अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति
/// जगत दर्शन न्यूज
दोस्ती दिवस पर कल सुबह से ही दोस्तों के बीच शुभकामनाओं के आदान प्रदान का दौर चल रहा है। इस दिन हर साल दोस्तों के बीच दोस्ती के रिश्ते की याद दिलाने और एक दूसरे के बीच प्यार जताने का यह दिवस घूम फिर कर आते रहा है। परन्तु आज के भागमभाग की जिंदगी के दौर में दोस्ती के रिश्तों की रिक्त पड़ी संभावनाएं पुनर्जीवित होती दिखती हैं क्या! दोस्ताना रिश्तों पर से तो अब भरोसा उठने लगा है। दोस्ती जैसे पवित्र रिश्ते को सरेआम शर्मसार करने वाली आज की पीढ़ी शायद दोस्ती की गहराई की परिभाषा से महरूम है। दोस्त द्वारा दोस्त के सरेआम कत्लेआम की छप रही खबरें दोस्ती के रिश्ते की खाई तथा दरारों के अनकहे कथानक की ओर हमरा ध्यान खींच रही हैं।
पेंसिल से शुरू दोस्ती की कहानी डस्टर की थप्पड़ खाकर भी नही सम्हली तो पेंसिल की चाल ने रिश्तों के बीच बड़ी लकीर खींचकर दोस्ती की राहें ही जुदा कर दी। अपनी जरूरतों के हिसाब से दोस्ती के रिश्ते को निभाने की कवायद में परेशान समाज दोस्ती की परिभाषा भी शायद अपनी जरूरतों के हिसाब से गढ़ने लगा है। अपने दोस्त को महफूज रखने के लिए अपनी जान की बाजी लगाने वाला दोस्त तो आज के जमाने में दिखते कम बलिदान की शान जताते ज्यादा हैं।
दोस्ती जैसे पवित्र रिश्ते को चंद सिक्कों से आँकने वाले शायद यह भूल जाते हैं कि जब घर परिवार, यहां तक कि परछाई भी साथ छोड़ जाती है तो सच्चे दोस्त का हाथ दोस्त के कंधे पर सुकून दिलाने के लिए अड़ा और पड़ा मिलता है। आज के दौर में पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब की उक्ति जब दोस्त प्रगति करे तो गर्व से कहो कि वह मेरा दोस्त है और जब दोस्त मुश्किल में हो तब कहना कि मैं उसका दोस्त हूँ। दोस्ती की इससे बेहतर और खूबसूरत परिभाषा दूसरी नही हो सकती, बड़ी ही सामयिक और समीचीन है। दोस्ती दिवस पर हम सब अपने गिरेबान में झांक कर खुद को झकझोरे, क्या हम दोस्त कहलाने के काबिल बन गए? सचमुच पुराना व पवित्र दोस्ती का रिश्ता हरा ताजा व पुनर्जीवित हो उठेगा।