जाने-माने शिक्षक व साहित्यकार बिनय कुमार भारतीय जी!
"दिव्यालय एक व्यक्तित्व परिचय" में हुआ साक्षात्कार!
अतिथि: बिनय कुमार भारतीय
होस्ट: किशोर जैन
रिपोर्ट: सुनीता सिंह "सरोवर"
अख़बार का अपना बड़ा इम्पोर्टेंस है। हमारे जमाने में तो यही हमारा गूगल हुआ करता था। इसी के सहारे हम देश दुनिया से जुड़े रहते थे। एक अखबार, बूढ़े लोग इसे पढ़ने में कई घंटे गुजार देते हैं। न्यूज़ लाने वाले न्यूज़ लाकर दे देते हैं। पर उस न्यूज़ को संवांरने का काम एडिटर का होता है। आइये आज हम मिलने जा रहे है जगत दर्शन न्यूज़ के एडिटर श्री बिनय कुमार जी से!- किशोर जैन
साहित्यकार या रचनाकार वह होता है जो अपने आसपास के परिवेश से तथा अपने अंतर्मन में उठ रहे सवालों को पन्ने पर अपनी तूलिका से सजाता है। वह अपने ह्रदय पर उभरते, बिखरे शब्दों को पिरोता है ओर अपनी आवाज में उन भावों को सजाकर रचना में चार चाँद लगा देता है।
आज दिव्यालय एक व्यक्तित्व परिचय चंद बातें कुछ यादें नई पुरानी में लेकर आया हैं साहित्य जगत और जगत दर्शन न्यूज़ के संपादक और साहित्यकार आदरणीय बिनय कुमार भारतीय को।
प्र. सर आप बिहार के किस शहर से हैं?
उत्तर- जी मैं बिहार के जिला छपरा अंतर्गत एक छोटे से गाॅंव ताजपुर का रहने वाला हूँ। मेरी प्रारंभिक शिक्षा मेरे गाँव की सरकारी पाठशाला से ही हुई। आगे की पढ़ाई इंटरमीडिएट और स्नातक के लिए मुझे शहर पटना और एमबीए के लिए मेरठ का रुख करना पड़ा। इंटर के बाद मेरी भी इच्छा तो मेडिकल में जाने को थी, मगर किस्मत में कुछ और लिखा था। एमबीए कर कैम्पस सेलेक्शन के तहत मेरी नौकरी इंडिया इंफोलाइन दिल्ली में लगी। वहाँ मैंने लगभग 4 साल नौकरी की। कुछ मगर, पिता की दुआओं का असर कहिए या भाग्य का लेख! शिक्षक भर्ती में मै चयनित हुआ और फिर बस माँ शारदे के आदेश का पालन करते हुए ज्ञान का प्रकाश फैला रहा हूँ।
प्र.2- आपका शहर में थे। सारी सुख सुविधाएं थी वहाँ। फिर भी आप गाँव के मकान में ही रहना पसंद करते हैं, क्यूँ?
उत्तर- मुझे गाँव में प्रकृति के बीच रहना बहुत पसंद है। अधिकतर हमारी कल्पनाओं में हमारी लेखनी में भी गाँव का दृश्य है। कभी पानी भरती पनिहारिन, कही हल चलाते किसान, और फिर शहरों में छोटे से मकान में ही पूरी जिंदगी लगता है कैद हो जाती है। भागमभाग जीवन से दूर गाँव का शुद्ध और शांत वातावरण मुझे सदा से ही लुभाता है। इसलिए मुझे गाँव में रहना पसंद है।
प्र.3 आपने कौन सी उम्र से लिखना शुरू किया?
उत्तर- जी मैनें शौक से इंटरमीडिएट से ही लिखना शुरू किया। लेकिन अब अधिक व्यवस्तता के कारण लिखना एक तरह से छूट ही गया है। इधर दरअसल शिक्षा विभाग से जुड़े होने के नाते मैंने हर संभव प्रयास किया कि समाज के अछूते पहलूओं पर भी ध्यान केंद्रित करूँ। हर तबके के बच्चों के लिए समुचित शिक्षा मिल सके। जिसके लिए मैने अपनी तरफ से पूरा प्रयास किया है और कर रहे हैं।
प्रश्न 4- सुना है आप गरीब बच्चों को फ्री में पढ़ाते हैं?
उत्तर- जी हाँ! मेरे पिता का सपना था कि उनका बेटा ज्ञान दान का नेक कार्य करें। और शायद ये उन्हीं के आशीर्वाद स्वरूप ही मुझे सरकारी नौकरी मिली और तभी से मैं गरीब बच्चों को भी फ्री में पढ़ाता हूँ।
प्रश्न-5 आप अपने आखिरी संदेश में समाज और युवाओं के लिए क्या कहना चाहतें हैं?
उत्तर: आखिरी संदेश में मैं यही कहना चाहता हूँ कि मानव जीवन एक साधना के फल स्वरूप ही प्राप्त होता है। एक संपादक, शिक्षक, साहित्यकार एवं समाज सेवक होने के नाते मैं आज के युवा शक्ति से यही कहना चाहता हूँ,जो भी करें पूरे मन से करें। अगर आप की रूचि लेखनी में है तो आजकल के जीवंत मुद्दे पर कलम चले तो इतिहास बन जाए। अगर आप एक खिलाड़ी हैं तो खेल के मैदान में अपना सौ प्रतिशत दें।
अंत में बेहतरीन संचालन कर रहे यू.के. से किशोर जैन ने अपने अतिथि को धन्यवाद दिया। इस नेक व सराहनीय कार्य के लिए दिव्यालय की संस्थापक व कार्यक्रम आयोजक व्यंजना आनंद 'मिथ्या' और पटल अध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजक मंजिरी "निधि" 'गुल'जी को कार्यक्रम आयोजन के लिए धन्यवाद दिया तथा बताया कि इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण Vyanjana Anand Kavya Dhara यूट्युब चैनल पर लाइव हर बुधवार शाम सात बजे हम देख सकते हैं। या उसकी रेकॉर्ड वीडियो को बाद में देखा जा सकता है।