आनन्द सूत्रम् पंचमोध्यायः भावानुवाद काव्य रूप धारावाहिक एवं त्रैमासिक पत्रिका का लोकार्पण!
मीडिया प्रभारी: मंजु बंसल
बेतिया (बिहार): दिव्यालय के प्रमुख पटल पर आधुनिक संचार तंत्र के माध्यम से आभासी पटल पर रविवार को अपराह्न तीन बजे से पटल की संस्थापिका व्यंजना आनंद मिथ्या द्वारा स्वरचित 'आनन्द सूत्रम् पंचमोध्यायः' भावानुवाद काव्य रूप धारावाहिक के लोकार्पण का कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में आचार्य विमलानंद अवधूत जी, आचार्य गुणीन्द्रानंद अवधूत जी व प्रद्युम्न नारायण सिंह के साथ पटल गुरुजन व पटल के अन्य सदस्य भी उपस्थित थे।
कार्यक्रम का शुभारंभ फ़रीदाबाद के रत्नेश श्रीवास्तव के सुमधुर संगीत व मृदु वाणी में प्रभात संगीत (अँखियाँ तुम्हीं को चाहताी हैं) से हुआ, जो आनंदमार्ग के संस्थापक भगवान श्री श्री आनन्दमूर्ति जी के द्वारा रचित था। तत्पश्चात् उन्ही के द्वारा रचित आनंदसूत्रम् के पंचम अध्याय के काव्य रूप धारावाहिक का लोकार्पण पटल उपसचिव लंदन से किशोर जैन जी के कर-कमलों द्वारा हुआ, जिसे कवयित्री व्यंजना आनन्द जो कि आनन्द मार्ग की साधिका व L.F.T. भी है ने लिखा है तथा स्वर और संगीत फरीदाबाद के रत्नेश श्रीवास्तव जी ने दिया है।
यह काव्य धारावाहिक आनंदसूत्रम् के पंचम् अध्याय से प्रेरित है, जिसमें समाज को सुव्यवस्थित करने के लिये समाज को कैसे नियम अपनाने चाहिये, पर प्रकाश डाला गया है।
तदुपरांत आचार्य विमलानंद अवधूत जी ने आनंदसूत्रम् के पंचम् अध्याय की विस्तृत व्याख्या की जिससे श्रोतागण लाभान्वित हुए। कार्यक्रम संचालिका मंजरी निधि गुल ने आचार्य जी से प्रश्न किया कि प्रउत क्या है, जिसकी चर्चा इस धारावाहिक में की गई है?
आचार्य जी ने विस्तारपूर्वक प्रउत का विश्लेषण किया एवं सुधीजनों की जिज्ञासा शांत की। प्रउत एक व्यवस्था है जिसमें समाज कैसे होना चाहिये, व्यक्ति को क्या नियम अपनाना चाहिये, जीवन-शैली कैसी हो, देश के विकास में।क्या अपेक्षित है आदि बातों को बताया। आनंदमूर्ति जी का प्राउत धरा पर सर्वाधिक प्रभाव डालने वाला है जो समाज व राष्ट्र की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक व्यवस्था बनाने में सहायक होता है, जिसका अनुकरण करके ही स्वस्थ समाज व राष्ट्र विकसित हो सकता है। तत्पश्चात् पटल पर उपस्थित आचार्य गुणीन्द्रानंद अवधूत जी ने अपने विचारों से अवगत करवाया।
मंजरी जी ने उनसे प्रश्न किया कि समाज के बीच आनंदसूत्रम् के इन सूत्रों की व्याख्या कितनी ज़रूरी है? व प्रउत क्या है जिसकी चर्चा धारावाहिक में की जा रही है, इससे क्या लाभ होगा? आचार्य जी ने सभी शंकाओं का समाधान करते हुये बताया कि आनंदमार्ग संपूर्ण जीवन का सार है, मानव-जीवन शारीरिक, भौतिक व मानसिक तीन तत्वों पर स्थिर है।
प्रउत दर्शन आनंदमार्गसूत्रम् के पंचम् अध्याय में दर्शाया गया है, जिसमें बताया गया है कि प्रउत व्यक्ति व समाज के परिप्रेक्ष्य में आवश्यक है। समाज की सामाजिक, आर्थिक, अनुशासन, राजनीतिक, सांस्कृतिक, साहित्य, ज्ञान-विज्ञान यानि जीवन का प्रत्येक पहलू प्रउत से संबंधित है। समाज को चार भागों में विभाजित किया गया है- शूद्र, ब्राह्मण , क्षत्रिय व वैश्य, जिनके अलग-अलग कार्य हैं। हर विभाग में अलग सोच, अलग मानसिकता होती हैं, जिनके संसर्ग में ही समाज की व्यवस्था सन्निहित होती है।प्रउत का सिद्धांत “सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय” का रहा है। प्रत्येक मनुष्य जब एक ही भाव, विचारधाराओं एक ही लक्ष्य लेकर बढ़ेगा तभी सुंदर व स्वस्थ समाज व राष्ट्र का निर्माण संभव है।
तदुपरांत. किशोर जैन ने काव्य धारावाहिक का सुंदर व संगीतमय वीडियो दिखाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया, जिसका पूरा श्रेय व्यंजना आनंद 'मिथ्या' ने फ़रीदाबाद के रत्नेश श्रीवास्तव को दिया, जिन्होंने काव्यधारा में अपना स्वर व संगीत देकर नव प्राण फूंक दिये।
पटल पर उपस्थित प्रद्युम्न नारायण सिंह ने भी आनंदमार्गसूत्रम् पर अपने विचार व्यक्त किये। मंजरी निधि ने उनसे प्रश्न किया कि-क्या आपको लगता है कि कभी भी समाज के लोग प्रउत के पञ्चमोध्याय के इन सूत्रों को अपनाएगी? और क्या समाज में परिवर्तन आएगा? दादा ने बहुत ही सधे हुये व शांतचित्त होकर सभी प्रश्नों का जवाब दिया। उनका कहना है कि अगर लोग इन सूत्रों व नियमों को नहीं मानेंगे तो एक समय आयेगा जब भयंकर विस्फोट होगा, जिसके फलस्वरूप महाविप्लव होगा एवं विश्व में भारी क्षति होगी। परिवर्तन तो गतिशील है। प्रउत का इतिहास कहता है कि समय की चक्राकार गति से ही समाज की व्यवस्था बनती व बिगड़ती है। जब-जब समाज में शोषण की प्रवृत्ति बढ़ती है तब साधारण मानव विद्रोह कर व्यवस्था में परिवर्तन करना चाहता है।
पटल संस्थापिका आ. व्यंजना आनंद मिथ्या ने कहा कि धारावाहिक को काव्य रूप देने का उनका उद्देश्य पूर्ण हुआ एवं वे भविष्य में वे आनंदमार्गसूत्रम् के अन्य अध्यायों को भी काव्य रूप देने की चेष्टा करेंगीं। प्रउत अथाह समुद्र है। मानव समाज को व्यस्थित करने में चार गुणों की ज़रूरत है एवं जिस व्यक्ति में चारों गुण आ जायें वह सद् विप्र बन जाता है।
कार्यक्रम के द्वितीय चरण में पटल की त्रैमासिक पत्रिका “आँचलिक व्रत व त्यौहार” का लोकार्पण किशोर जैन के वरद् हस्तों द्वारा किया गया, जिसमें सभी साधकों व गुरुजनों द्वारा लावणी छंद में भारत के विभिन्न आँचलिक त्यौहार का सुंदर शैली में वर्णन किया गया है, जिसमें हमारे लिप्तप्राय त्यौहारों को पुनर्जीवित किया जाना ही प्रमुख उद्देश्य है। इस पत्रिका को मूर्तरूप देने में अलंकरण प्रमुख व संपादिका राजश्री शर्मा, समीक्षक, राजकुमार छापड़िया न प्रधान संपादिका व्यंजना आनंद मिथ्या की जितनी प्रशंसा की जाये कम है।
राजश्री शर्मा ने बताया कि सभी साधकों की लेखनी सही दिशा में दौड़ी है। सबने उत्साहपूर्वक पत्रिका को बनाने में पूर्ण सहयोग दिया। पत्रिका सही मायनों में हमारी विरासत है जिससे भावी पीढ़ी भी लाभान्वित होगी।
व्यंजना आनंद मिथ्या ने कहा कि राजकुमार जी की क़लम हीरे की तरह पारखी है। साथ ही मंजरी जी का भी पूरा योगदान रहता है। पाठशाला के साधक भी कम नहीं हैं जो अपनी परीक्षा में जैसे सफल हुए। सभी में पटल का नाम रोशन किया।
अंत में मंजरी निधि ने सभी उपस्थित आचार्य, गुरुजन व साधकों का धन्यवाद ज्ञापन करके हुये कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की।