कवितालोक साहित्यांगन में चित्र आधारित सृजन की प्रतियोगिता में दिव्यालय ने तीन श्रेष्ठ रचनाकार को किया सम्मानित!
विधा: रोला छंद
रचना: पद्माक्षि शुक्ल "अक्षि
निकली चिड़िया भोर,
नया सपना था मन में।
करती अन्न तलाश,
खुशी छलके तब तन में।।
नभ में करे उडा़न,
नहीं मिलता है दाना।
हुआ हृदय नाराज,
ढूँढती रही खजाना।।
तेज किरण रवि आज,
हुई गर्मी जब भारी।
मन से हुई निराश,
चित्त से चिड़िया हारी।।
बहे पसीना देह,
थकावट खुद ने पाई।
पीडित तृषित मन आज,
नीर ढूँढे गोराई।।
छत पर देखा नीर,
अंग में ऊर्जा पाई।
एक बूँद की प्यास,
नयन में खुशियाँ छाई।।
करती है जल पान,
तृप्त मन टेर लगाई।
फिर से भरे उड़ान,
हृदय में आश जगाई।।
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रचना: मनीषा अग्रवाल 'प्रज्ञा'
दोहे
जल संकट गहरा लगे,
तड़प रहे हैं जीव।
संरक्षण कर नीर का,
हरदम बहे अतीव।।
सूर्य तपन को देखकर,
व्याकुल चिड़ियाॅं आज।
अगन बुझे अब प्यास की,
गिरी हृदय पर गाज।।
तरस रही एक बूॅंद को,
किसे सुनाऊॅं पीर।
ताल -तलैया सूखते,
कहाॅं मिलेगा नीर।।
छत पर देखी नीर तो,
राहत मिला शरीर।
हिय में आई जान भी,
बदल गई तकदीर।।
अंतस भरती है तपिश,
जल से करती खेल।
कठिनाई से जूझकर,
संकट लेती झेल।।
मुंडेरों पर जल रखें,
खग का करें बचाव।
कुदरत की है संपदा,
होगा नहीं अभाव।।
मानव का कर्तव्य है,
रखें जीव का ध्यान।
नश्वर जीवन में करो,
अन्न नीर का दान।।
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रचना: प्रियदर्शनी राज
ताल तलैया खोजता,
मिला पात्र में नीर।
चहक उठी जल देखते,
ज्यों मिलती तक़दीर।।
ज्यों मिलती तक़दीर,
भटकती चिड़िया रानी।
सुखे सभी तालाब,
बताती यही कहानी।
प्रिया जगे जज्बात,
खगा की बनी खवैया।
लगा रही कुछ पेड़,
भरेंगे ताल तलैया।।
तरसे पंछी बूंद को,
खोजे जग में नीर।
लगे खगा प्यासा मरे,
सोच नैन में पीर।।
सोच नैन में पीर,
मिला जल का इक प्याला।
चुन्नी पानी छोड़,
गयी थी आज दुमहला।।
रखे प्रिया जल पात्र,
निकल जो चिड़िया घर से।
रखे आत्म को तृप्त,
नही जल पंछी तरसे।।
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