राजगृही चाचा: एक प्रेरणा एक याद!
लेखक
मनोज सिंह (एसएसपी, धार, राजस्थान)
उन्होंने उनका मेरे पिताजी जी से उनका काफी लगाव था। जब भी मेरे पिताजी से वे मिलने आते थे मुझे पढ़ाई के लिए प्रेरणा दिया करते थे। आज उन्हीं के आशीर्वाद से मुझे इस मुकाम पर पहुंचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
बाबू जी के साथ जब जब राज गृही चाचा की बैठक होती थी, तब तब साहित्य मुस्कुराता नज़र आता था। ग्रामीण अंचल की आबोहवा के बीच जब परिवेश हिन्दी व अंग्रेज़ी साहित्य की विभिन्न विधाओं के वार्तालाप का होता था, तब माहौल पाठशाला सा बन जाता था। उसी बीच परमेश्वर बाबू (जैतपुर )का आना, फिर क्या! तीनों का दोस्ताना अंदाज में बतियाना आज ज़ेहन की गहराइयों मे उतर रहा, क्योंकि आज राज गृही चाचा जी की विदाई हुई है। ईश्वर ने उन्हें अपने पास बुलाया है, उनके कैवल्य प्राप्ति ने बाबूजी की यादें भी ताज़ा कर गई, क्योंकि दोनों का तासीर पाठशाला व शिक्षक की रही है। पिछले दिनों गाँव गया तो उनके व्यक्तित्व की चर्चा खूब हुई। एकमा जाकर मुलाक़ात समयाभाव के कारण नहीं हो सका, इसके लिए मन आज भारी कचोट रहा है। राज गृही चाचा जी का जाना अपने गाँव समाज की अपूरणीय क्षति है। एक संस्कार का अंत है तथा शिक्षा जगत का ख़ालीपन है। धीरे धीरे वो सारी पीढ़ी अपने आँखों से ओझल हो रही है, जिससे हमलोगो ने सीख लेकर अपने जीवन को सजाने संवारने का प्रयास किया है। बचपन मे बहुत कुछ सीखा गए राज गृही चाचा जी। भगवान महाकाल उनको अपने चरणों में स्थान दे तथा दुख की इस घड़ी मे परिवार को साहस व संबल दे। मै आदर पूर्वक उनके प्रति अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।