हमेशा कन्फ़्यूज़ रहता हूँ………
रचना: निरेन सचदेवा (बेंगलोर)
हमेशा कन्फ़्यूज़ रहता हूँ………
कौन ज़्यादा सुखी है,
कौन ज़्यादा दुखी है……..
“सोने की चैन वाला”
या
“चैन से सोने वाला”……..
रोते हुए हँसने वाला या हँसते हुए रोने वाला?
खोते हुए पाने वाला या पा कर खोने वाला?
मोतियों से माला पिरोना वाला या आस्था और निष्ठा के मनकों से माला पिरोने वाला?
दौलत के सपने संजोने वाला या जुनूने ख़ुशी के सपने संजोने वाला?
वहशीपन में अपने आप को डुबोने वाला या आशिक़ी में अपने आप को डुबोने वाला?
मय के प्याले पीने वाला या अमृत के प्याले पीने वाला?
शराबी बन जीने वाला या चेहरे पर रंगत गुलाबी रख जीने वाला?
ईश्वर से दौलत माँगने वाला या उस प्रभु की हमेशा इबादत करने वाला?
जुनून को तलाशने वाला या बेजान मूर्तियों को तराशने वाला?
औरों को समझाने वाला या अपने आप को समझने वाला?
अपने में खूबियाँ ढूँढने वाला या अपने में कमियाँ ढूँढने वाला?
रचेता से शिकायत करने वाला या उसका शुक्रिया अदा करने वाला?
हमेशा मौज मस्ती करने वाला या हमेशा कोई ख़ता करने वाला?
सवाल अनेक, जवाबों की तलाश है……..
पर एक बात तो तय है कि आजकल इन्सान बहुत हताश है……..
है दर्द में ,है नासाज़ है, निराश है……..
और बहुत नासमझ आजकल का समाज है,
दिलों पर दग़ाबाज़ी और मौक़ापरस्ती कर रही राज है……….
Just some spontaneous thoughts, need your feedback my dears.