"दिव्यालय एक व्यक्तित्व परिचय" में हुआ साक्षात्कार!
अतिथि: जस कालरा
होस्ट: किशोर जैन
रिपोर्ट: सुनीता सिंह सरोवर
बेतिया (बिहार): हमारे मनुष्य जीवन में मानवता सबसे बड़ा धर्म है। जब मनुष्य कठिन हालात में होता है तब उसे सहेजने के लिए ईश्वर किसी न किसी को सेवा भाव की सद्बुद्धि दे ही देता है। पुरुषार्थ करना कोई मामूली बात नहीं उसके लिए जिगर लगता है। इस रंगीन दुनिया में मानव सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है। किसी ने सही कहा है कि मानवता कि सेवा करने वाले हाथ उतने ही धन्यवाद होते हैं जितने कि परमात्मा कि प्रार्थना करने वाले होंठ।
आज हमारे दिव्याली एक व्यक्तित्व परिचय चंद बातें कुछ यादें नई पुरानी में आज हम आपको एक ऐसे ही समाज सेवी युवा जस कालरा जी से मिलवा रहे हैं जो सिर्फ 23 वर्ष के हैं।
प्रस्तुत है होस्ट किशोर जैन द्वारा पूछे गए प्रश्न उनका जबाब!
प्रश्न: सर आप हिंदुस्तान में कहाँ से हैं?
उत्तर: मेरा जन्म 22 अगस्त 1999 को दिल्ली में हुआ। उसके बाद मेरे माता- पिता गुड़गांव में रहने लगे। वहां मेरे पिता श्री रवि कालरा ने एक संस्था 'दि अर्थ सेवियर' की नीव डाली। इसका मकसद बेसहारा, बीमार बुजुर्गों को सहारा देना है।
प्रश्न: आपकी शिक्षा दीक्षा कहाँ से हुई?उत्तर: प्रारंभिक शिक्षा तो गुडगाँव से ही हुई, परंतु आगे की उच्च शिक्षा के लिए मैं आस्ट्रेलिया के मेलबर्न में गया। वहां से मैंने पी. जी. पूरी किया और वापस स्वदेश आकर अपने पिता के सेवा भाव से प्रभावित होकर दि अर्थ सेवियर से जुड़ कर पिता के साथ सेवा कार्य करने लगा।
परंतु अपने जिंदगी के विधि के विधान कोई बदल नहीं सकता। वक्त भी जैसे मेरे आने का ही इंतजार कर रहा था। मैंने थोड़ा बहुत इस कार्य की बारिकी को सीख ही था कि मेरे पिता का हाथ मुझसे सदा के लिए छूट गया और एक बार फिर वक्त मुझे आजमाने लगा। पर कहते हैं ना जब नीव मजबूत हो तो तूफान चाहे कितना भी भयंकर क्यों न हो वो एक ईट भी हिला नहीं सकता। बस मैंने भी अपनी माँ और इस चैरिटी से जुड़े लोगों के साथ अपने अच्छे कार्य करना नही छोड़ा।
प्रश्न: आपके आश्रम में एडमिशन की फीस क्या है?
उत्तर: आश्रम में आने वालों से कोई फीस नहीं ली जाती। हाँ पर कभी- कभी कुछ लोग अपने बुजुर्ग / बीमार माँ- पिता को यहाँ छोड़ने आते हैं तो उनसे स्वैच्छिक दान के लिए प्रेरित किया जाता है। यहाँ रहना खाना और फ्री इलाज की व्यवस्था की जाती है, जो कई अच्छे हास्पिटल इनके आश्रम से टायअप हैं और अपनी सेवाएँ देते हैं।
प्रश्न:अपनी संस्था के बारे में कुछ बताएं!
उत्तर: कुछ विडियो कल्पना के माध्यम से हमनें देखा की किन - किन हालातों में यहाँ बुजुर्ग और बीमार लोग पहुँचते हैं। कुछ तो अपने ही जिग़र के टुकड़ों के यातनाओं को सहते- सहते अपना सुध- बुध खो चुके होते हैं, तो किन्हीं को उनके अपने ही बच्चे सड़कों पर जीने को मजबूर कर देते हैं। कहीं किसी के बच्चों ने संपत्ति के लिए माँ- बाप को वाशरूम या किराये के कमरे में बंद कर मरने के लिए छोड़ कर चल देते हैं। इन हालातों में इस आश्रम द्वारा उन्हें रेस्क्यू कर लाया जाता है। उनका इलाज करवाया जाता है। कुछ एक को रियूनाइट कर अपनो से मिलवाया भी जाता है। दूसरी बात यह भी बताना चाहता हूँ कि अभी तक इस आश्रम द्वारा लगभग हजारों लावारिस लाशों का दाह संस्कार भी किया गया है।
प्रश्न: एक आखिरी संदेश नवयुवकों के लिए।
उत्तर: इस धरती पर जन्मदाता ही ईश्वर का रूप है। अतः हमें बुढ़ापे में अपने माता-पिता की सेवा करें। उन्हें प्यार दे, तो शायद यह धरा स्वर्ग बन जाए।
अंत में बेहतरीन संचालन कर रहे यू.के. से किशोर जैन ने अपने अतिथि को धन्यवाद दिया। इस नेक व सराहनीय कार्य के लिए दिव्यालय की संस्थापक व कार्यक्रम आयोजक व्यंजना आनंद 'मिथ्या' और अध्यक्ष व कार्यक्रम संयोजक मंजिरी निधि 'गुल'जी को कार्यक्रम आयोजन के लिए धन्यवाद दिया तथा बताया कि इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण Vyanjana Anand Kavya Dhara यूट्युब चैनल पर लाइव हर बुधवार शाम सात बजे हम देख सकते हैं। या उसकी रेकॉर्ड वीडियो को बाद में देखा जा सकता है।