होलिका दहन का विधान पूर्णिमा की अवधि में बताया गया है। दिनांक 7 मार्च दिन मंगलवार की रात्रि में पूर्णिमा का वास नही है। ऐसा बताया गया है कि सूर्यास्त के बाद रात्रि काल में पूर्णिमा के रहने पर होलिका दहन किया जाता है, जबकि दिनांक 7 मार्च 2023 को पूर्णिमा वास नहीं करती है। इसलिए, सोमवार दिनांक 6 मार्च 2023 को शाम 4:17 से पूर्णिमा वास करती है। शास्त्रों की माने तो भादरा की पूंछ काल में यानी 12:23 से रात्रि 1:00 बज के 30 मिनट के मध्य होलिका दहन करने का विधान है। ऐसा नारद पुराण में और गर्ग पुराण में और निर्णय सिंधु के पृष्ठ संख्या 105 में बताया गया है। इतना ही नहीं संपूर्ण भद्रा की समाप्ति 4:48 के बाद सुबह 5:30 बजे तक करना चाहिए। तथापि 6:14 पर जाने के बाद मंगल दोष लग जाता है इसलिए मंगलवार के दिन होलिका दहन निषेध है।
होलिका दहन क्यों मनाया जाता है!
असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक के रूप में होलिका दहन का त्यौहार मनाया जाता है। इसके पीछे पौराणिक कथा सुनी गई है, जो विष्णु पुराण के अंतर्गत भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद को त्रस्त करने के लिए देवताओं के शत्रु और हिरण कश्यप की बहन टुंडा नामक राक्षसी ने एक बार भक्त प्रहलाद को जला देने के उद्देश्य से प्रचंड अग्नि की ज्वाला में बैठकर जला देने की प्रयास की। तथापि भगवान की ऐसी असीम कृपा, जो भक्तों के ऊपर रहती है, के कारण भगवान के परम भक्त प्रहलाद उस समय में नहीं जले और होलिका जलकर राख हो गई। इसी उपलक्ष्य में होली की पूर्व संध्या पर अर्थात पूर्णिमा के दिन रात्रि काल में होलिका दहन का आयोजन किया जाता है। साथ ही होलिका दहन का विधान इस प्रकार बनाया गया है कि सबसे पहले होलिका की पांच बार परिक्रमा करनी चाहिए चाहिए। पुआ, पकवान तथा पकौड़ी आदि डालकर के अपने घर के पुरुषों के माथे का परिक्रमा करा के डाल देना चाहिए। इससे समस्त दुखों का हरण हो जाता है। तत्पश्चात होलिका दहन के अगले दिन धुरंधी होली का आयोजन करना चाहिए। इस वर्ष अगले दिन मंगलवार होने के कारण धूलंडी होली का आयोजन दिनांक 8 मार्च 2023 बुधवार को होलिका मनाने का सलाह दिया जाता है।