हमारा धर्म हमारी संस्कृति अनेकों गौरवमय शाश्वत सत्यों से परिपूर्ण है!
हिंदी महिला समिति (नागपुर) ने सनातन धर्म, संस्कृति पर एक रोचक परिचर्चा की। अध्यक्षता रति चौबे ने किया। संयोजिका अंजुलिका चावला रही।
अध्यक्षा रति चौबे जी के अनुसार
सनातन धर्म अनादि है। सनातन शाश्वत व अनादि है। इसकी संस्कृति हर दृष्टिकोण से अनोखी है, जो अन्य धर्मों में नज़र नहीं आती, सनातन संस्कृति अर्थपूर्ण है। वह आंकती है, खनकती है, झंकृत होती है। सनातन संस्कृति का कोई भी संस्थापक नहीं है। कारण इसका उद्गम सृष्टि के साथ ही हुआ है। इस धर्म की उत्पत्ति कब, क्यूं कैसे हुई कह नहीं सकते। क्योंकि शाश्वत, अनादि का प्रमाण वह खुद होता है। संतों की जीवनशैली ही सनातन धर्म से सदैव को प्रचलित हो गई जो आज तक जीवित है और रहेगी। यह स्वनिर्मित ही है जो अखंड है। हजारों वर्ष पूर्व सिंधुघाटी में रहने वालों निवासियों द्वारा जो शैली थी। उसी ने धर्म का रुप ले लिया। कारण उन्होंने प्रकृति की हर कण में ईश्वर को देखा हुई न अनोखी अद्भुत विचारधाराएं।
नास्तिकता ही हिंदू धर्म का एक हिस्सा है, क्यों?
क्योंकि यह सनातन धर्म "आत्मा" को परमात्मा" मानता है। सनातन कण कण में ईश्वर का स्वरूप देखता है। चींटी से मानव में भी। एक देवता में ही अनेक देवताओं का ही अद्भुत क्षमताओं का समागम "सनातन धर्म" है। सनातन धर्म सदैव स्वर्ण के समान इस धरा नभ पे दैदीप्यमान रहेगा। चाहे इसपर कितने ही कुठाराघात क्यों न हो। यह पावन गंगा के सदृश सबको साथ लेकर सदा ही प्रवाहित होता रहेगा कल कल करता। उछालें लें लहराता हुआ अपनी विभिन्न संस्कृतियों की नवीनताओं को आगोश में लिए।
गीतू शर्मा के अनुसार.....
हमारी संस्कृति का आधार स्तंभ हमारा सत्य सनातन धर्म है। भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां विविधता में एकता है। हर धर्म, जाति और संप्रदाय के लोग भारत में है, जिसका कभी अंत ही नही हो सकता वो है "सनातन" हमारा धर्म और संस्कृति दोनो ही शाश्वत है सनातन है। ये गौरव केवल हम हिंदू धर्मावलंबियों को प्राप्त है।
हमारी संस्कृति का कोई तोड़ ही नही है ब्रह्म मुहूर्त में उठना और सूर्य नमस्कार से लेकर पुनः रात को सोने तक हम हमारी संस्कृति के अनुरूप चलते है, जो की शायद ही किसी और देश में होता हो। हमारा धर्म हमे मानवता सीखता है ,हर जीव में ईश्वरीय अंश है ये हमारे धर्म की ही सीख है।
पूरा विश्व हमारी संस्कृति का लोहा मानता है, धर्म का अनुसरण करना चाहता है ये अपने आपमें बहुत गौरवपूर्ण है। "भगवद गीता" का पाठ हो या "हनुमान चालीसा" का विदेशी हमारी संस्कृति अपना रहे है , विश्व भर में 800 इस्कॉन मंदिर इस बात का प्रमाण है।
सबसे अनूठी बात ये है की आज विज्ञान जिन चीजों को प्रक्षेपित कर गौरवशाली। बना है, हमारे सनातन धर्म के अनुयाई युगों पहले ही कर चुके। उदाहरण के तौर पर "च्यवन ऋषि" जिन्होंने एक विशेष औषधि का निर्माण और सेवन कर स्वयं को आजीवन बूढ़ा हो नही होने दिया , आज विज्ञान च्यवन प्राश इनके नाम पर ही बेच रहा है। वहीं वैदकीय क्षेत्र में आजकल सेरोगेसी प्रक्रिया द्वारा गर्भधारण की गति और संभावनाएं संभव हुई है। ये प्रक्रिया भी हमारी संस्कृति की हो देन है। जब हजारों वर्षों पूर्व माता देवकी के गर्भ से कान्हा जी गोकुल पहुंच गए, और माता देवकी के गर्भ में कन्या को स्थापित कर दिया गया। हमारी संस्कृति और धर्म की गाथा लिखने को शब्द कम पड़ जायेंगे। अमूल्य, अतुलनीय है हमारी संस्कृति और धर्म।
मुझे गर्व की मेरा जन्म हिंदू धर्म में हुआ है। मेरी संस्कृति सनातन हिंदू संस्कृति है।
भगवती पंत जी के अनुसार....
भारतीय संस्कृति सनातन है जो आदिकाल से चली आरही है। हमारी सनातन संस्कृति प्रकृति व वैज्ञानिक आधार पर बनी है। हमारे रीति रिवाज त्यौहार सभी प्रकृति के अनुसार बने हुए हैं तथा इनका वैज्ञानिक महत्व भी है। एक छोटा सा उदाहरण बताती हूँ- श्रावण, भाद्र, क्वार और कार्तिक। ये चार महिने चौमासा कह लाते हैं। इन महीनों में शुभकार्य वर्जित होता है क्योंकि कहा जाता है कि भगवान विष्णु इन चार महीनों में शयन करते हैं। पूजा पाठ और व्रत इन महिनों में बहुत किये जाते हैं। अब इसका वैज्ञानिक आधार देखिये। बरसात में सूर्य के बादलों से ढके रहने के कारण मनुष्य की जठराग्नि मंद पड़ जाती है। उसे खाना जल्दी हजम न होने के कारण पेट संबन्धी बीमारियाँ हो जाती हैं। इसलिये इन चार मास में दिन में एक बार भोजन को महत्व दिया गया है। ऐसा करने से मनुष्य अपनी पाचन शक्ति ठीक रख सकता है। वैसे भी सप्ताह में एक दिन हम व्रत रखें तो हम बीमारियों से काफी हद तक बचे रह सकते हैं और हमारे सनातन धर्म में तो उपविस का बहुत महत्व है।सनातन संस्कृति के मंत्रों में तो अद्भुत और गूढ़ शक्ति छिपी है। प्राचीन काल में तो लोग इन मन्त्रों की सहायता से बड़ी बड़ी बीमारियाँ तक ठीक कर लेते थे। क्योंकि सनातन धर्म का आधार वैज्ञानिक है और यह प्रकृति के नियमों पर बना है।यह धर्म हमें स्वस्थ, श्रेष्ठ जीवन जीना सिखाता है। साथ ही यह मानवोचित गुणों का भी विकास करता है। योग विद्या, ध्यान प्राणायाम, ब्रह्म मुहूर्त में उठना ये सब सनातन संस्कृति से ही सीखा जा सकता है। यहाँ पर इन सबके बारे में बताना तो संभव नहीं है पर इस विद्या को अपना कर मनुष्य निरोग रह कर दीर्घायु प्राप्त कर सकता है।
हेमलता मिश्र 'मानवी' जी के अनुसार....
सनातन के अनेकानेक तत्वों में ध्यान अंतर्ध्यान और लीन की संकल्पना ध्यान, अंतर्ध्यान और लीन इन तीनों में क्या अंतर है। ध्यान मन का होता है। अंतर्ध्यान देह या तन होता है। लीन आत्मा होती है।भारतीय संस्कृति में ध्यान साधना बहुप्रचलित तत्व है जिसमें कुंडलिनी जागरण से देह अंतर्ध्यान तक की प्रक्रिया निहित होती है। अपने स्थूल शरीर को सूक्ष्म रूप में परिवर्तित करके अदृश्य हो जाने की क्रिया को अंतर्ध्यान हो जाना कहते हैं। स्थूल देह के भीतर जो प्राण तत्व होता है उसे ही आत्मा कहते हैं। आत्मा की ब्रम्हांड में विलीनता ही लीन होना है।
आम सामान्य इंसानों के लिए बड़ी ही मुश्किल है इन महीन अंतरों को समझना। तथापि भारतवर्ष की आध्यात्मिक वैज्ञानिक दार्शनिक सनातन संस्कृति में ये महीन अर्थ भेद बडे़ तात्विक रूप से परिभाषित हैं।
रश्मि मिश्रा के अनुसार......
हमारा धर्म हमारी संस्कृति विश्व स्तर पर सर्वोपरि है। इसी के अन्तर्गत हम कहना चाहेंगे कि भारत में संगीत परम्परा भी बेहद प्राचीन है। इसका उद्गम भी वेदों से हुआ है। यज्ञ के अवसर पर सामगान की प्रथा थी। प्राचीन काल में भारतीय संगीत वाद्यों में जो स्थान वीणा का था वही स्थान कालांतर में सितार का हो गया। या यों कहें कि प्राचीन सप्त तारों की वीणा ही सितार के रूप में परिवर्तित हो गई।
सितार के साथ अमीर खुसरो के नाम का संयुक्त होने का एक साधारण सा संयोग मात्र नहीं है बल्कि वे सितार के आविष्कारक हैं। यह बात यहीं तक संकुचित नहीं हो जाती, खुसरो के बाद उनके पौत्र तथा फिरोज खाँ और अदारंग के पुत्र मसीत खाँ ने तीन तारों के साथ चार तार और जोड़ दिए।
आधुनिक समय में पं रविशंकर ने सितार में अति मंद्र का एक तार और जोड़ा और वीणा का कृंतन अंग भी समाविष्ट किया तथा लयकारी से सुसज्जित किया।
अपराजिता जी के अनुसार........
हमारी भारतीय संकृति और सनातन धमॅ का चोली दामन सा साथ है। हमारी संकृति अनेको धमो को साध लेकर विभिन्नतामें एकता का परिचय देती है। हमारे चार वेद अनेको पुराणोंके साथ ही पुरानी संकृति के साथ ही नवीनता का सामन्जस्य भी नज़र आता है। हमारे श्रषि,मुनि कंद, मूल और फल खा कर स्वस्थ रहते थे सुह सूयोॅदय से पवॅ उठ कर दैनिक क्रिया से निवृत हो कर सयॅ नमस्कार करते फिर योगा करते ईश्वत की आराधना के साथ ही ध्यान करते थे। तब ना किसी रोज से गॉस्त होते थे और न ही खोई अवसाद उन्हे घेरता था। हमारी संकृति संगीत मयी है जिसमें वीणा, सितार बांसुरीके साथ ही डमरू की तेज ध्वनी के साथ ही शहनाई की मधुर कानों रस घोलने वाली संगीत लहरी भी दिखाई देती है। अक्सर शहनाई शादी के समय बजाई जाती है। बहुत सुखद एहसास कराती है। हमारे शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान की ख्याति भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी भारतीय संकृति कि लोहा मनवाती है। सच हमारी भारतीय संकृति इतनी अनूठी विशाल और मज़बूत है की कोई भी बुरी नज़र उसे ना मिटा सकी है और ना उसकी हस्ती मिटा पाऐगी।
अंजुलिका चावला के अनुसार..
सनातन का अर्थ है चिरन्तन और शाश्वत।सनातन संस्कृति भारतीय जीवन शैली का प्रतिनिधित्व करती है। भारतीय सनातन संस्कृति में आचार- विचार, अध्यात्म, विज्ञान, दर्शन, योग, चिकित्सा और नीति जैसे विभिन्न घटक हैं।सनातन संस्कृति विश्व के लिए सदैव प्रेरणापुंज और अनुकरणीय रही है।सृष्टि के आदिकाल से ऋषियों ने अपनी योग और तपस्या के बल पर ज्ञान अर्जित कर इसे समृद्ध बनाया। हमारी कालजयी संस्कृति कई बार कसौटी पर परखी गई किंतु वो आज भी प्रासंगिक एवं प्रामाणिक है।युगों युगों से अनवरत बहती ज्ञान और संस्कार की यह पावनी धारा आज भी हमें गौरवांवित करती है।