मदर ऑफ ओरफेन्स, पद्म श्री डॉ सिंधुताई सपकाल का निधन
पुणे (महाराष्ट्र): 4 जनवरी 2022 को पद्म श्री से सम्मानित महाराष्ट्र की प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सिंधुताई सपकाल जी के निधन हो गया। यह एक सम्पूर्ण देश के लिए दुखद है। अनाथ बच्चों की परवरिश में उनका बहुमूल्य योगदान रहा है।
सिन्धुताई सपकाल जो अनाथ बच्चों के लिए समाजकार्य करनेवाली मराठी समाज की कार्यकर्ता है। उन्हें अनाथों की माँ भी कहा गया है। उन्होने अपने जीवन मे अनेक समस्याओं के बावजूद अनाथ बच्चों को सम्भालने का कार्य किया है।
सिंधुताई को मिले कुल 273 पुरस्कार जिनमें मुख्य रूप से निम्नांकित शामिल है:
◆अहिल्याबाई होळकर पुरस्कर (महाराष्ट्र राज्य द्वारा),
◆राष्ट्रीय पुरस्कार "आयकौनिक मदर",
◆सह्यद्री हिरकणी पुरस्कार्,
◆राजाई पुरस्कार,
◆शिवलीला महिला गौरव पुरस्कार,
◆दत्तक माता पुरस्कार,
◆रियल हिरोज पुरस्कार (रिलायन्स द्वारा),
गौरव पुरस्कार सिंधुताईं को लगभग 750 राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले है उनमें से कुछ उस प्रकार है:-
◆महाराष्ट्र शासन का डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर समाज भूषण पुरस्कार (2012)
◆पुणे का अभियांत्रिकी कॉलेज का 'कॉलेज ऑफ इंजिनिअरिंग पुरस्कार' (2012)
◆महाराष्ट्र शासन का 'अहिल्याबाई होलकर पुरस्कार' (2010)
◆मूर्तिमंत माँ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार (2013)
◆आयटी प्रॉफिट ऑर्गनायझेशनचा दत्तक माता पुरस्कार (1996)
◆सोलापूर का डॉ. निर्मलकुमार फडकुले स्मृती पुरस्कार
◆राजाई पुरस्कार
◆शिवलीला महिला गौरव पुरस्कार.
◆'सामाजिक सहयोगी पुरस्कार' (1992)
◆'रिअल हीरो पुरस्कार' (2012). ◆दैनिक लोकसत्ता का'सह्याद्री की हिरकणी पुरस्कार' (2008)
◆प्राचार्य शिवाजीराव भोसले स्मृती पुरस्कार (2015)
◆डॉ. राम मनोहर त्रिपाठी पुरस्कार (2017)
सिन्धुताई की संघर्ष की कहानी
सिन्धुताई का जन्म 14 नवम्बर 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले के 'पिंपरी मेघे' गाँव मे हुआ। उनके पिताजी का नाम 'अभिमान साठे' है, जो कि एक चरवाहा (जानवरों को चरानेवाला) थे। लैंगिक भेदभाव के चलते उन्हें घर में 'चिंधी'(कपड़े का फटा टुकड़ा) बुलाते थे। इनकी माताजी शिक्षा के खिलाफ़ थी, परंतु पिताजी सिन्धु को पढ़ाना चाहते थे, इसलिए वे सिन्धु की माँ के खिलाफ जाकर सिन्धु को पाठशाला भेजा करते थे। माँ के विरोध और आर्थिक सीमाओं के रहते इनकी शिक्षा में बहुत सी बाधाएँ आती रही अतः इनकी शिक्षा चौथी कक्षा तक ही हो पाई।
मात्र 10 वर्ष की आयु में ही सिंधुताई का विवाह 30 वर्षीय 'श्रीहरी सपकाळ' से कर दिया गया था। वहीं मात्र 20 वर्ष की आयु तक उनकी 3 संतानें हो चुकी थी।गाँववालों को उनकी मजदुरी के पैसे ना देनेवाले गाँव के मुखिया की शिकायत सिन्धुताई ने जिला अधिकारी से की थी। अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मुखिया ने श्रीहरी (सिन्धुताई के पति) को सिन्धुताई को घर से बाहर निकालने के लिए उत्प्रेरित कर मजबूर किया। फलतः उनके पति ने उन पर अवैध यौन संबंध का आरोप लगाकर उन्हें पीटकर घर से निकाल दिया था। इस दैरान वे 9 महीने गर्भवती भी थी। घर से अपमानित होकर निकलने के रात ही उन्होने तबेले (गाय-भैंसों के रहने की जगह) में अर्धचेतन अवस्था में एक बेटी को जन्म दिया। इस स्थिति में जब वे अपनी माँ के घर आई तो उनकी माँ ने भी उन्हे घर मे रखने से इंकार कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि उनके पिताजी का देहांत हुआ था, वरना वे अवश्य अपनी बेटी को सहारा देते)। सिन्धुताई अपनी बेटी के साथ एक रेलवे स्टेशन पर रहने लगी। पेट भरने के लिए भीख माँगती और रात को खुद को और बेटी को सुरक्षित रखने हेतू शमशान मे रहती। उनके इस संघर्षमय काल मे उन्होंने यह अनुभव किया कि देश मे कितने सारे अनाथ बच्चे है, जिनको एक माँ की जरुरत है। तब से उन्होने निर्णय लिया कि जो भी अनाथ उनके पास आएगा वे उनकी माँ बनेंगी। इसके लिए उन्होने अपनी खुद की बेटी को 'श्री दगडुशेठ हलवाई, पुणे, महाराष्ट्र' ट्र्स्ट में गोद दे दिया ताकि वे सारे अनाथ बच्चों की माँ बन सके।