बुजुर्गों की जिंदगी में मुस्कान बिखेर रहा संगीत
मांझी (बिहार) संवाददाता मनोज सिंह: भौतिकता की भागदौड़ में मशगूल समाज से अलग एक तबका ऐसा भी है जो प्रतिदिन संगीत के सागर में डुबकी लगाकर वीरान पड़ी अपनी जिंदगी में मुस्कान बिखेर रहा है। गीत संगीत में रुचि रखने वाले अवकाश प्राप्त कर्मचारी पदाधिकारी किसान व बृद्ध पशुपालक प्रतिदिन अलग अलग गांवों में धार्मिक स्थलों पर अपना संगीत का राग अलापते हैं। प्रतिदिन अपने पारिवारिक उलझनों से निकलकर ये बुजुर्ग गायक वादक अपनी सुरों के सहारे संगीत के साथ साथ अध्यात्म को भी बखूबी साधते हैं। अष्टयाम में ये सभी बड़े ही श्रद्धा भाव से भजन कीर्तन में शामिल होते हैं। मंगलवार को माड़ीपुर सती स्थान पर पहुंचे गायक व वन विभाग के पूर्व इंस्पेक्टर घनश्याम ओझा ने बताया कि रविवार को मदन साठ शिवालय एवम समहोता के पयहारी बाबा स्थान तथा दाउदपुर स्थित शहीद स्मारक परिसर में सोमवार को बंगरा ठाकुरबाड़ी तथा जलालपुर के मिश्रवलिया मन्दिर पर मंगलवार को माड़ीपुर स्थित सती स्थान पर बुधवार को लंगड़ा ब्रम्हस्थान पर गुरुवार को सन्यासी मठिया नन्दपुर शुक्रवार को मिश्रवलिया तथा शनिवार को बंगरा फक्कड़ बाबा स्थान पर गायक वादक इकट्ठा होकर गीत संगीत के साथ साथ आध्यत्मिक व सामाजिक उत्थान जैसे विषयों पर चर्चा कर सामाजिक समरसता हेतु अपने अनुभव साझा करते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि ये सभी बुजुर्ग कलाकार 50 वर्ष से 85 वर्ष की उम्र के होते हुए भी साइकिल की सवारी करते हैं। गायक क्रमशः बशिष्ठ नारायण सिंह वकील सिंह महादेव यादव रमेश भारती कुँअर सिंह उमाशंकर नंदलाल लोकनाथ भारती गणेश सिंह धर्मनाथ सिंह सुदीश सिंह अनिल सिंह विन्दा राम अशोक सिंह आदि गायक भजन निर्गुण पूर्वी सोहर कजरी गाकर महेंद्र मिश्र तथा भिखारी ठाकुर को बखूबी याद करते हैं। बुजुर्ग गायकों का कहना है कि संगीत के अल्पज्ञ कलाकार बड़े बड़े मंचों पर अश्लील व फूहड़ प्रदर्शन बड़े गर्व के साथ करते हैं तथा समाज का एक बड़ा तबका इस फूहड़पन के लिए उन कलाकारों को मोटी रकम देकर उसे शान समझता है लेकिन वे लोग शायद भूल जाते हैं कि उनकी शान बटोरने में उनकी परम्परागत संस्कृति का नाश होता जा रहा है। भोजपुरी संगीत की संस्कृति को जीवंत रखने की कशमश करते इन बुजुर्ग कलाकारों को भाव नही मिलने का मलाल है
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