हम दिवाली क्यो और कैसे मनाएं?
✍️प्रिया पांडेय 'रौशनी'
दिवाली क्यों? कब से? कैसे?
तमसो मा ज्योतिर्गमय
/// जगत दर्शन न्यूज
दिवाली जिसे हम लोग दीपोत्सव भी कहते है " तमसो मा ज्योतिर्गमय" मतलब ' अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए' एक एक शब्द को सार्थक करती है दीपावली!
दिवाली भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है । दीवाली शब्द दीपावली का अपभ्रश है, जिसका अर्थ दीपों की पंक्ति होता है। यह त्यौहार कार्तिक माह के मध्य में अर्थात् कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इसी समय जाड़े का प्रारम्भ होने लगता है।
इस त्यौहार के बारे में भी लोगों के विभिन्न मत हैं। जैनियो का विश्वास है कि इस दिन महावीर स्वामी स्वर्ग गए थे । वहाँ देवताओं ने उनका हार्दिक स्वागत किया था। इस दिन उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ था। इसी यादगार में यह त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
वहीं हिन्दुओं का मत है कि इस दिन रावण पर विजय प्राप्त करके श्रीरामचन्द्र जी अयोध्या पहुंचे थे। अयोध्या वासियो ने अपने घरों को खूब सजाया और दीपो की पंक्ति से जगमगा कर श्रीरामचन्द्र जी का बड़े आदर और सम्मान से स्वागत किया। इसी याद में हर वर्ष लोग दीवाली का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाते हैं।
यह त्यौहार बड़े शान और शौकत से मनाया जाता है । लोग काफी समय पहले से अपने-अपने घरों और दुकानों की सफाई करते है, दीवारों पर सफेदी कराते हैं तथा दरवाजों, खिड़कियो और फर्नीचर आदि पर रग-रोगन करते हैं। त्यौहार के दिन लोग घरों और दुकानों को खूब सजाते हैं। तरह-तरह के पकवान और मिठाइयाँ बनाई जाती हैं। शाम को लोग बिजली के बच्चो, मोमबत्तियों और तेल के दियो से घर का कोना-कोना सजा देते हैं ।
त्यौहार कैसे मनाया जाता है:
दीवाली की रात लोग अपने-अपने घरों और दुकानो को खूब रोशन करते हैं । साधारण लोग मिट्टी के दीपकों और मोमबत्तियों से तथा बड़े और समृद्ध लोग बिजली के रंगीन बच्चों की झालर से रोशनी करते हैं । तरह-तरह के पटाखे और आतिशबाजी पर बड़ी धनराशि व्यय की जाती है । शाम से ही हर तरफ से पटाखों का शोर सुनाई पड़ने लगता है । सभी लोग नए और अच्छे-अच्छे वस्त्र और परिधान पहने बडी प्रसन्न मुद्रा में दिखाई देते हैं ।
रात्रि के समय घरों और दुकानो में धन की देवी लक्ष्मी जी का पूजन बड़ी श्रद्धा से किया जाता है । खील-बताशों का इस दिन विशेष महत्त्व होता है। तरह-तरह के पकवान और मिठाइयों का भोग लगाया जाता है और लक्ष्मी जी की आरती उतारी जाती है। पूजन के बाद घर के लोग प्रसाद के रूप में खील-बताशे तथा मिठाइयाँ खाते हैं। अपने-अपने रिश्तेदारों और मित्रों के घर मिठाई और खील-बताशे भेजे जाते है। नौकरों को बख्शीश दी जाती है और भिखारियों को दान दिया जाता है।
व्यापारी वर्ग इस दिन अपने पुराने खाते बन्द करके नया खाता प्रारंभ करते हैं । इसी दिन उनका नया लेखा वर्ष प्रारम्भ होता है। हिन्दुओं का विश्वास है कि इस दिन लक्ष्मी जी सभी घरों का चक्कर लगाती हैं और जिस घर में अंधेरा देखती हैं और बन्द पाती हैं, वही से नाराज होकर चली जाती हैं। इसलिए हिन्दू अपने-अपने घरों में रात भर खूब रोशनी करते हैं और जागते रहते हैं!
देवताओं और असुरों के बीच मेंं समुद्र मंथन हुआ। हजारों साल चले इस मंथन में एक दिन महालक्ष्मी निकली। उस दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या थी।
. दीपावली का पर्व आदि काल से मनाया जाता है। इसे संसार में खुशी का प्रतीक माना गया है। दीपावली के दिन अन्य कई इतिहास भी जुड़े है। भगवान् श्री कृष्ण इसी दिन शरीर मुक्त हुए। जैन मत के अनुसार अंतिम तीर्थकर भगवान् महावीर, महर्षि दयानंद सरस्वती ने दीपावली को ही निर्वाण प्राप्त किया। लेकिन हिन्दुओं का मत है कि दीपावली के दिन रामजी के विजयी होकर अयोध्या लौटे थे। उनकी खुशी में घी के दीपक जलाए गए और खुशियां मनाई गई।
राम-सीता और लक्ष्मण की खुशी में दीपावली मनाई जाती है तो इस दिन राम की पूजा क्यों नहीं की जाती। सिर्फ लक्ष्मी पुत्र गणेश, विष्णु पत्नी लक्ष्मी, सरस्वती का ही पूजन क्यों किया जाता है। आइए हम बताते है इस रहस्य को। युगों पुरानी बात है। जब समुद्र मंथन नही हुआ था। उस दौरान देवता और राक्षसों के बीच आए दिन युद्ध होते रहते थे। कभी देवता राक्षसों पर भारी पड़ते तो कभी राक्षस। एक बार देवता राक्षसों पर भारी पड़ रहे थे। जिसके कारण राक्षस पाताल लोक में भागकर छिप गए।
राक्षस जानते थे कि वे इतने शक्तिशाली नही कि देवताओं से लड़ सकें। देवताओं पर महालक्ष्मी अपनी कृपा बरसा रही थी। मां लक्ष्मी अपने 8 रूपों के साथ इंद्रलोक में थी। जिसके कारण देवताओं में अंहकार भरा हुआ था। एक दिन दुर्वासा ऋषि समामन की माला पहनकर स्वर्ग की तरफ जा रहे थे। रास्ते में इंद्र अपने ऐरावत हाथी के साथ आते हुए दिखाई दिए। इंद्र को देखकर ऋषि प्रसन्न हुए और गले कि माला उतार कर इंद्र की ओर फेकी। लेकिन इंद्र मस्त थे। उन्होनें ऋषि को प्रणाम तो किया लेकिन माला नही संभाल पाएं और वह ऐरावत के सिर में डाल गई।
हाथी को अपने सिर में कुछ होने का अनुभव हुआ और उसने तुंरत सिर हिला दिया था, जिससे माला जमीन पर गिर गई और पैरों से कुचल गई। यह देखकर वे क्रोधित हो गए। दुर्वासा ने इंद्र को श्राप देते हुए कहा कि जिस अंहकार में हो, वह तेरे पास से तुरंत पाताल लोक चली जाएगी। श्राप के कारण लक्ष्मी स्वर्गलोक छोड़कर पाताल लोक चली गई। लक्ष्मी के चले जाने से इंद्र व अन्य देवता कमजोर हो गए। राक्षसों ने माता लक्ष्मी को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। राक्षस बलशाली हो गए और इंद्रलोक पाने की जुगत भिड़ाने लगे। उधर लक्ष्मी के जाने के बाद में इन्द्र देवगुरु बृहस्पति और अन्य देवाताओं के साथ ब्रह्माजी के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने लक्ष्मी को वापस बुलाने के लिए समुद्र मंथन की युक्ति बताई।
देवताओं और असुरों के बीच मेंं समुद्र मंथन हुआ। हजारों साल चले इस मंथन में एक दिन महालक्ष्मी निकली। उस दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या थी। लक्ष्मी को पाकर देवता एक बार फिर से बलशाली हो गए। माता लक्ष्मी का समुद्र मंथन से आगमन हो रहा था, सभी देवता हाथ जोड़कर आराधना कर रहे थे। भगवान विष्णु भी उनकी आराधना कर रहे थे। इसी कारण कार्तिक आमावस्या के दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही रोशनी की जाती है। लक्ष्मी के मय में कोई गलती न कर दें, इसलिए सरस्वती और गणेश जी पूजा होती हैं!
✍️प्रिया पाण्डेय रोशनी