कुछ अछूते छू कर ही बनते है।परंतु अछूते समाज को बिन छुए भी समाज को स्वच्छ रख कर उपेक्षित रहते है। फिर उनपर कोई कुछ लिखे तो कहर उगलने वाली बात हो जाती है। वेस्ट बंगाल में हिंदी साहित्य की युवा कवियित्री प्रिया पांडेय 'रौशनी' जी ऐसे ही किरदार को सामने रख रही है। ये किरदार एक नजर में हमारे समाज के अच्छे सुविचारक तो नही!
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कुछ उनकी कहानी, हमारी जुबानी
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: प्रिया पाण्डेय "रोशनी "
कुछ उनकी है कहानी
जो अपने जुबानी बताती हूँ।
भले है गन्दा सुनने में,
आज इनकी कीमत बताती हूँ।
भारत की बेटियां जो,
कुछ हद तक सुरक्षित हैं।
एहसान तो उनका है,
जो आज उपेक्षित है।।
इसके लिये सरकार नहीं,
वैश्याओ का भी एहसान हैं।
कुछ पैसो क़े लिये ही ,
भले बिकता उनका तन हैं।।
मासूमों को नोचने वालों को ठंडक देती हैं।
चाहे बदले में उनसे कुछ पैसे लेती है।।
अगर ये आज ना होती,
तो देश की हालत कुछ और होती।
आज एक हवस का शिकार होती हैं,
तब करोड़ों हवस का शिकार होती।।
भले ही कुछ पैसों क़े लिये तन को बेचती बेचारी है।
पर समाज के कुछ कुकर्म से,
बचाती उपेक्षित नारी हैं।।
चलो उनका सम्मान करें।
कुछ उनका गुणगान करें।
जो बात किसी ने सोचा समझा,
वो बात हमने बतायी हैं।
आज कहो या सदियों से,
कुछ नारियों की ज़िन्दगी तो वैश्याओ ने ही बचायी हैं।
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प्रिया पाण्डेय "रोशनी "
संपादिका (साहित्य)
जगत दर्शन न्यूज़
वेस्ट बंगाल