शिक्षक तमीजुद्दीन के विरूद्ध की गई कार्रवाई एक तानाशाही कदम
सिवान बिहार : लोकतंत्र का अर्थ केवल चुनावी प्रक्रिया नहीं बल्कि सत्ता का समतामूलक विभाजन भी है। सरकार के गलत नीतियों की आलोचना आमजनों का अधिकार ही नहीं, कर्तव्य भी है। सरकार द्वारा वर्ष 2014-15 एवं 2015-16 के मध्याह्न भोजन के बोरों को बेच 10 रूपए प्रति बोरे की दर से राशि जमा करने का आदेश दिया गया है,यह निंदनीय भी है और हास्यास्पद भी।
गौरतलब हो कि बोरे की ढुलाई एवं रखरखाव में हुक का प्रयोग होता है। स्कूल पहुंचने तक बोरे में कई जगह हुक लग जाते हैं। बोरे की रही सही कसर चूहे पूरा कर ही देते हैं। ऐसे में बोरे को बेच कर राशि जमा करना न्यायोचित नही है और कितना संभव है कहना मुश्किल है !
शिक्षक तमीजुद्दीन द्वारा इस आदेश का विरोध किया गया तो विभाग ने बजाय अपने कमी को देखने के बजाय उसी को निलंबन कर दिया। यह सरकार की तानाशाही मानसिकता को दर्शाता है। शिक्षक पर कार्रवाई न सिर्फ शिक्षक समाज का अपमान है,बल्कि मौलिक अधिकार का हनन भी है।
बिहार सरकार को चाहिए कि शिक्षकों के उचित माँगों को गंभीरता से ले। बहुत अच्छा होता कि शिक्षक को MDM के साथ साथ अन्य गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त कर बच्चों के विकास में ध्यान केंद्रित करने दिया जाता। शिक्षक विभिन्न माँगों को लेकर कई बार धरने-भूख हङताल इत्यादि करते रहे हैं पर सरकार की ऐसी गम्भीरता कभी दिखी ही नही जैसी दिखती जैसे कि निलंबन में दिखाया गया।
प्रगतिशील प्रारंभिक शिक्षक संघ सिवान, सरकार के इस कार्रवाई की घोर निंदा करता है तथा यह मांग करता है कि नामित शिक्षक के निलंबन के आदेश को अतिशीघ्र वापस ले। संघ बोरा बेचने के आदेश को भी निरस्त करने की मांग करता है।