ऊत्तरप्रदेश के गोरखपुर में स्थित दीनदयाल यूनिवर्सिटी एक प्रख्यात यूनिवर्सिटी है। उच्च शिक्षा का गढ़ है। पर ये समाज मे क्या शिक्षा क्या देती है?,क्या संतुष्ट है यहां काम करने वाले आम कर्मचारी? इसको लेकर तो पूछा जा सकता है यहां के कर्मचारियों से।
मामला यहां आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को लेकर है। दीनदयाल विश्वविद्यालय में लगभग 300 आउटसोर्सिंग कर्मचारी 2012 से लगभग 9 वर्ष से कार्य करते है। वेतन मिलता है मात्र 7500 रुपये प्रतिमाह। 4 माह से वतन बन्द। इन कर्मचारियों का परिवार कैसे चले। कैसे जीते मरते होंगे इनके बच्चे।
क्या कहते है कर्मचारी
"सब्जी हो तेल , महंगाई किसी से छुपी नही हुई है। वेतन यहां के कुलपति के द्वारा जारी की जाती है, हमेशा तीन या चार माह पर। हम लोग कैसे जीते है इसका अंदाजा लगा सकते है आप लोग। इस विकट स्थिति में अभी भी अप्रैल से वेतन नहीं मिला है। आवाज उठाने पर गाली के साथ बात किया जाता है। सीधे धमकी दी जाती है कि कल से काम पर आना।कोई समाधान नही किया जाता।अभी के वर्तमान कुलपति के द्वारा वेतन 5 - 6 माह बाद ही निर्गत किया जाता रहा है। इसके पहले जो भी कुलपति आये वो हर माह चुकता करते थे।"
पूछना से ऊत्तरप्रदेश के योगी सरकार से क्या यही है आपका ऊत्तरप्रदेश? क्या यही ही आपका विधान सभा क्षेत्र ? क्या ऐसे हो चलता है राज। यहां के एक एक आम नागरिक का इस से भी बुरा हाल है। जमीनी हकीकत क्या है, इस से अवगत हो।
खैर अभी तो संजीव राव , राजदेव यादव , मोहन यादव, राकेश श्रीवास्तव , रवि कुमार, धन्नजय कुमार, डीपक कुमार , डी एन पांडेय आदि कर्मचारियों का एक अनुरोध है। एक विनती है यहां के उच्च अधिकारियों से,मंत्रियों से, मुख्य मंत्री से। इन्हें वेतन पर ध्यान दिया जाए। इन्हें कम से कम समय पर वेतन दिया जाए। जरा ये भी हो सके तो ध्यान दिया जाए कि इनका परिवार कैसे चले इतने कम पैसे में । एक मजदूर प्रतिदिन 500 रुपये अर्थात 15000 रुपये माह कमाता है । आखिर ये आधे में कैसे पढ़ाये अपने बच्चों को। कैसे चलाएं अपना परिवार!