जानकारी के अनुसार उत्तरप्रदेश के विधानसभा सदस्य नरेंद्र सिंह वर्मा अपने सभी प्रकार के संवैधानिक पदों के द्वारा सृजित पेंशन मदों का त्याग करने का पत्र जारी किया है। अपने पत्र में इन्होंने महात्मा गांधी के उस प्रसंग का जिक्र किया है जिसमें महात्मा गांधी के पास जब एक छोटा सा बच्चा अपने मां के साथ आता है तो मां शिकायत करती है कि मेरा बेटा गुड बहुत खाता है । इससे इस लत को कैसे छुड़ाएं? महात्मा गांधी ने उसे 10 दिन के बाद आने को कहा। जब 10 दिन के बाद वह बच्चा आया तो महात्मा गांधी ने जवाब दिया कि बहुत गुड़ अच्छी बात नही होती । अतः तुम भी गुड़ खाना बंद कर दो। तब उस मां ने पूछा कि आपने 10 दिन के बाद इसे क्यों बुलाया था? यह बात तो आप 10 दिन पहले भी कह सकते थे। महात्मा गांधी ने इसका जवाब दिया था कि जब मैं गुड़ खाना बंद कर दूंगा तब तो पता चलेगा कि गुड़ कैसे छुड़ाया जाए। जब मैं खुद खाता ही रहूंगा तो दूसरे को कैसे मैं बताने का हकदार हूं कि गुड़ कैसे छोड़ा जा सकता है! या गुड़ को छोड़ देना चाहिए । पहले अपने मे सुधार लाना जरूरी होता है।
इसी से प्रेरित होकर नरेंद्र सिंह वर्मा ने गांधी विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि देश में 2004 के बाद सभी संवैधानिक पदों में सृजित पेंशन को समाप्त कर दिया गया है । इस स्थिति में जब अन्य कर्मचारियों को पेंशन नहीं मिलता है तो वह भला पेंशन के हकदार कैसे हो सकते हैं? इसीलिए उन्होंने नरेंद्र मोदी से गुहार लगाया है कि उन्हें सेवानिवृत्त होने के बाद किसी भी प्रकार का पेंशन नहीं दिया जाए। उन्होंने ने अपने पत्र में साफ साफ जिक्र किया है कि जब भी कोई कर्मचारी उनसे पेंशन पर कोई सवाल करता ही तो उन्हें बहुत बुरा लगता है।
आज हमारे देश के कर्मचारियों के लिये सामान्यतः सामाजिक सुरक्षा के तहत कोई पेंशन की व्यवस्था नही है। कर्मचारी लाचार है। पेट पालने के लिए किसी तरह नौकरी तो करते है परंतु सेवानिवृत्त के पश्चात उनको पूछने वाला कोई नही रह जाता है। ऐसे कई मामले मिल जाते ही जिसमे कर्मचारी अपने बीमारी की इलाज करा पाने में असमर्थ होते है।
श्री नरेन्द्र सिंह वर्मा का यह पहल बिल्कुल सराहनीय है। यह इनका कदम केंद्र सरकार की आंखे खोलने के लिए प्रयाप्त है । पर आंखे खुल सकती है कि नही यह कहना मुश्किल है। इसे लेकर अभी एक बहुत बड़े आंदोलन की आवश्यकता है।