प्रस्तुत है सुनीता सिंह सरोवर की यह काव्य रचना जिसका शीर्षक है पतंग। पतंग के माध्यम से इनके सरल शब्द एक नारी की अंतर्व्यथा को जीवंत किया है।यह एक सारगर्भित रचना है। उम्मीद है सभी को पसंद आएगी।
पतंग
पतंग रंग बिरंगी,
हर्षित मन का उल्लास,
डोर किसी और के हाथों में होती हैं,
फिर भी गगन को छूने की चाह में,
उड़ती, गिरती ,बादलों से अटठखेलियां करती,
पतंग,
पवन के रुख को चुनौती देती पतंग
धरा को चुम नए हौसलों से,
गगन को छूने उड़ती,
कभी गिरती,कभी उड़ती,
कभी किसी पेड़ की शाखाओं में जा छुपती,
तेज हवा, के रुख से,
आहत जर्जर होती पतंग,
यथार्थ है,स्त्री मन भी तो पतंग सा ही है,
रिश्तों की डोर में,
बंधी उन्मुक्त गगन की चाह लिए उड़ती है,
कभी डोर पिता के हाथों में,
कभी भाई के हाथों में,
आजीवन पति के हाथों की डोर में बंध,
अपना अंबर ढूढतीं पतंग सी,
नीले गगन को तकती रहती है,
माँ,बहन,बेटी,चाची,भाभी हर रिश्ते की,
डोर सहेजती रहती हैं,
कभी चार दिवारी में बंद,
उन्मुक्त गगन की आस में,
घुट-घुट जर्जर होती पतंग।।
◆ सुनीता सिंह सरोवर
सम्पादन : प्रिया पांडेय 'रौशनी'