🌼 सच्ची सफलता 🌼
यह कहानी गांव की एक लड़की विद्या की है। जिसकी चाहत और उसकी मेहनत ने उस गांव को खुब गौरवान्वित किया।
एक गांव में 7 सदस्यों का एक परिवार रहता था। जिसमें एक छोटी बच्ची विद्या रहती थी। विद्या गांव के ही माध्यमिक विद्यालय में पढ़ती थी। उस गांव में  एकमात्र वही माध्यमिक  विद्यालय था। विद्या को  बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक था और वह बहुत ही होनहार थी। वह पढने के साथ साथ गांव के बच्चो को पढाया भी करती थी।  जब  विद्या ने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली तो  तो उसे आगे और भी पढ़ाई करनी थी।   लेकिन गांव में कोई सुविधा ना होने के कारण उसे शहर जाना  पड़ा। और गांव वाले विद्या की शहर जाकर पढ़ाई करने के पक्ष में नहीं नहीं थे। लेकिन आखिरकार विद्या के परिवार ने उसे शहर में पढ़ने के लिए भेज दिया विद्या गांव की लड़की शहर चली गई।
 लेकिन वह शहर जाकर  ज्यादा खुश नहीं थी।  वह सोचती रहती थी। कि उसके परिवार ने तो उसे यहां  पढ़ने के लिए भेज दिया लेकिन उसकी सहेलियां, उनकी पढ़ाई का क्या और वो छोटे-छोटे बच्चे जिन्हें वह पढ़ाया करती थी। क्या उन्हें जब उच्च शिक्षा हासिल करनी होगी तो क्या  सभी शहर आ पाएंगे।
 विद्या जानती थी कि ऐसा संभव नहीं होगा सबके लिए और हो सकता है कि उन्हें अपना सपना अधूरा छोड़ना पड़े। विद्या को  गांव की बहुत याद आती थी ।
 एक दिन जब  विद्या छत पर बैठी हुई थी तो गांव का वह नजारा याद आ रहा था। चारों तरफ हरियाली , पेड़ पौधे चिड़ियों के चहचहाने की आवाज , वह शांति , सुकून और वह शुद्ध हवा  से तरोताजा होकर पूरी कंसंट्रेशन के साथ उसका  पढना।
 थोड़ी देर में जब विद्या ने आंखें खोल कर देखी तो  दूर-दूर तक कोई वृक्ष कहीं कोई भी पेड पौधे  नजर नहीं आ रहे थे। विद्या  को प्रकृति से बहुत प्रेम था। वह प्रकृति के निकट रहना पसंद करती थी लेकिन यहां शहर में उसे इसके लिए बहुत दूर जाना पड़ता था।
 खैर वह यहां भी मन लगाकर पढ़ने लगी और देखते ही देखते उसकी सरकारी नौकरी लग गई। यह खबर सुनकर उसके परिवार वाले बहुत खुश हुए और जो गांव वाले उसकी पढ़ाई के पक्ष मे नही थे वहां भी  उसकी मेहनत के चर्चे  होने लगे, आस पड़ोस में मिठाइयां बांटी गई सभी लोग बहुत खुश थे। विद्या भी खुशी-खुशी रोजाना ऑफिस जाति और अपना कार्य जिम्मेदारी पूर्वक ठीक से करती थी ।
कुछ दिनों के बाद विद्या छुट्टी लेकर घूमने के लिए गांव आ गई। जब वह शहर से गांव आई तो देखा कि गांव में पक्की सडके बन चुकी है। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में कुछ नहीं बदला है आज भी शिक्षा के नाम पर सिर्फ एक माध्यमिक स्कूल हैं। उसकी सहेलियों की शादी हो  चुकी थी। और जिन्हें वह पढ़ाया करती थी वह बच्चे अपनी पढ़ाई छोड़ चुके थे।
 यह सब देख कर विद्या को बहुत दुख हुआ। वह रोने लगी उसने महसूस किया कि  उसकी नौकरी से सिर्फ  उसकी जिंदगी बदली है। बाकियों की जिंदगी में वही समस्याएं है। विद्या उन्हें उनकी हालात पर नहीं छोड़ सकती थी। उसने खुद के लिए सख्त कदम उठाया और अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी और  गांव में ही विद्यालय खोल दिया। फिर एक टीम बनाई और पढ़ाई के प्रति सब को जागरूक किया ।
  धीरे-धीरे गांव के लोग उसमें अपने बच्चों का दाखिला कराने लगे और गांव  में पढ़ाई को बढ़ावा मिलने लगा। पढ़ाई के साथ-साथ खेल भी जरूरी होता है। विद्या इन बातों को अच्छी तरह जानती थी उसने पहले  तो स्कूल में ही एक प्लेग्राउंड बनवाया और फिर वह प्लेग्राउंड उसके सफल छात्रों के योगदान से एक स्टेडियम में बदल गया । गांव के बच्चे बड़े प्रतिभावान होने लगे । 
विद्या की शिक्षा मूलतः चरित्र निर्माण और संस्कारों पर आधारित थी। और यही वजह था कि गांव के यह बच्चे पूरी दुनिया में नाम कर रहे थे और लोकप्रिय हो गए थे  ।
 अब विद्या की पीएचडी पूरी हो चुकी थी। विद्या की मेहनत,  लगन, संघर्ष और  पढ़ाई के प्रति उसके समर्पण  को देखते हुए वहां के सरकार ने गांव में ही यूनिवर्सिटी खोलने का फैसला सुना दिया। अब इस गांव में खेल का स्टेडियम , स्कूल  , यूनिवर्सिटी  वह सब  था जिसे विद्या वहां के बच्चों के लिए महत्वपूर्ण  मानती थी ।
लेकिन विद्या यहीं नहीं रुकी विद्या को स्कूल स्टेडियम यूनिवर्सिटी चाहिए था। लेकिन वह अपने गांव को नेचर के साथ जोड़े रखना चाहती थी। विद्या ने अपने यूनिवर्सिटी के पार्क में छात्र - छात्राओं की मदद से  एक हजार पेड़ लगाई और सरकार से आग्रह किया कि यह एक हजार पेड़ कभी भी इस यूनिवर्सिटी से ना काटे जाएं ।
विद्या के इस प्रयास  से पूरा देश प्रभावित था। सब ने विद्या को सपोर्ट किया और सरकार  ने आग्रह  स्वीकार करते हुए कहा कि जब तक ये यूनिवर्सिटी रहेगी यह हजार पेड़ नहीं  काटे जाएंगे और यदि इन पेड़ों में से किसी भी पेड़ को कोई नुकसान होता है तो वहां नए पेड़ लगाए जाएंगे ।
सचमें यह सब विद्या की निस्वार्थ कोशिशों का ही परिणाम था !
शिक्षा :- वहां मत जाइए जहां रास्तें ले जाय। अपने रास्ते खुद बनाइए और चाहे लाख कठिनाईयां आए डटकर ममुकाबला किजिये।  खुद पर भरोसा रखिए और आगे बढिये आप सिर्फ खुद को ही नही दूसरों की जिंदगी मे भी खुशिया ला सकते है। उन्हे भी सफलता का स्वाद चखा सकते है यही सच्चि सफलता है! 
रचना
प्रियांशु सिंह
कक्षा 10 वी
तुरियम मिशन स्कूल, एकमा
