करोना काल में निजी विद्यालयों की स्थिति दयनीय
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शिक्षा समाज की रीढ़ होती है। शिक्षा का आधार विद्यालय है। आज कल का जो समय गुजर रहा है उसमें सबसे दयनीय स्थिति है निजी विद्यालयों का,खासकर बिहार के सभी निजी विद्यालय सरकार की उपेक्षा का दंश झेल रहा है। सरकार को यह अवश्य सोचना चाहिए था कि ये निजी विद्यालय अपना किराया कहाँ से लाएंगे। इसके शिक्षक अपना भरण पोषण कहाँ से करेंगे। विद्यालयों से नफरत का भाव जो सरकार के मन में है,उससे ऐसा लगता है कि सभी निजी विद्यालय के संचालक सरकार के नजर में इन्सान है ही नही। निजी विद्यालयों के ही विद्यार्थी आज कल हर झेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहे है।
जहाँ तक निजी विद्यालयों के शिक्षकों का सवाल है तो वेलोग बिल्कुल ही टूट गये है,बहुत शिक्षक तो डिप्रेशन में चले गये हैं।छात्रों की पढ़ाई तो गत 1.5 वर्ष से बन्द होने से उनकी पढ़ने-लिखने का आदत ही छूट गयी है ।
कोरोना का प्रभाव समाज के सभी वर्गो पर पड़ा है परंतु सबसे अधिक प्रभावित निजी विद्यालय और उनके शिक्षक है।
सरकार के असमानता में किस प्रकार शिक्षण संस्थान जीवित रहेंगे ?भविष्य में ऐसा कब तक चलेगा? अभी कुछ भी नही कहा जा सकता है।
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राजन गुप्ता
इसुआपुर सारण